कठोपनिषद

11th Mantra of Katopanishada
(ग्यारहवां मन्त्र)

यथा पुरस्ताद् भविता प्रतीत औद्दालकिरारुणिर्मत्प्रसृष्ट:।
सुखं रात्री: शयिता वीतमन्युस्त्वां ददृशिवान्मृत्युमुखात्प्रमुक्तम् ॥११॥

(यमराज ने नचिकेता से कहा) तुझे मृत्यु के मुख से प्रमुक्त हुआ देखने पर, मेरे द्वारा प्रेरित आरुणि उद्दालक (तुम्हारे पिता) पहले की भांति ही विश्वास करके क्रोध एवं दु:ख से रहित हो जायेंगे, रात्रियों में सुखपूर्वक् सोयेंगे।

(Yama replied :) “By my intercession, the son of Arun, Uddalaka (the father of Nachiketa), will recognize you as before, and will lose his anger." In the night he shall sleep happily, for having seen you return from the mouth of death”.

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