22th Mantra of Kathopanishada
(बाइसवां मन्त्र)
देवैरत्रापि विचिकित्सितं किल त्वं च मृत्यों यत्र सुविज्ञेममात्थ।
वक्ता चास्य त्वादृगन्यों न लभ्यो नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित् ॥२२॥
वक्ता चास्य त्वादृगन्यों न लभ्यो नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित् ॥२२॥
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु)! आपने जो कहा कि इस विषय में देवों ने भी सन्देह किया था और तुम (नचिकेता) ने भी और यह (विषय) सुगमता से जानने योग्य नहीं है, परन्तु इस विषय का उपदेश करने वाला आपके तुल्य और कोई मिल नहीं सकता और इस वर के सदृश अन्य कोई वर नहीं है।
(Nachiketa said): “O Death! Surely, in this subject even the gods (Devas) had doubts, and also that this cannot be understood easily. Thus there can be no better teacher of this subject than you (who is the authority on this). Therefore no other boon can be equal to this one.
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