2nd, Mantra of Isa-Upanishad.
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥२॥
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥२॥
(इस लोक मे कर्म करते हुए ही सौ वर्ष जीनेकी इच्छा करनी चाहिए। इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं है, ऐसा करने से तुझे [अशुभ] कर्मका लेप नहीं होगा ॥2॥)
One should desire to live in this world a hundred years, one should live performing Karma (righteous deeds), by which method bad karma may not cling, i.e. one may not get attached to karma. Therefore, one should desire to live by doing only such karmas as Agnihotra etc.
शुभ व अशुभ कर्म दोनों बन्धन के हेतु हैं। योगी अकर्म में स्थित होता है इन सब से पृथक। स्वर्वेद पढ़ें ।
जवाब देंहटाएंॐ ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
जवाब देंहटाएंतेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥