7th Mantra of Isa-Upanishad.
यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद्विजानतः ।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ।।७।।
(जिस अवस्था में विशेष ज्ञानप्राप्त योगी की दृष्टि में सम्पूर्ण चराचर जगत परमात्मा ही हो जाता है उस अवस्था में ऐसे एकत्व देखने वाले को कहाँ मोह और कहाँ शोक ?)
When, to the knower (the man who has realized the Supreme Reality), all those being have become the Self (Ataman). For him how can there be delusion or sorrow, when he sees the Oneness (every-where)?
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