ईशावास्योपनिषद

14th Mantra of Isa-Upanishad
सम्भुतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयं सह ।
विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूयामृतमश्नुते ॥
जो असम्भूति (अव्यक्त प्रकृति) और संभूति (हिरण्य गर्भ ) को साथ साथ जानता है ; वह कार्य ब्रह्म की उपासना से मृत्यु को पार करके असम्भूति के द्वारा प्रकृति लय रूप अमरत्व को प्राप्त कर लेता है ।
He who knows at the same time both the Unmanifested (the cause of manifestation) and the destructible or manifested, he overcomes death through knowledge of Hiranyagarbha and obtains immortality through knowledge of unborn Prakriti.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें