चित्त की पांच अवस्थायें

 चित्त की पांच अवस्थायें।

चित्त की पांच अवस्थायें मानी जाती है : अर्थात् वह पांच स्तरों पर काम करता है। उनके नाम हैं: मूढ, क्षिप्त, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध ।

 मूढ़

मूढ वह अवस्था है जिसमें तमोगुण की प्रबलता रहती है। मूढ़ चित्त केवल इन्द्रियों की सेवा में लगा रहता है। उसे और किसी बात में अभिरुचि नहीं होती । एक कहानी है कि किसी नगर में एक महात्मा रहते थे । उनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य ऊंचे प्राध्यात्मिक जीवन का अधिकारी है। उसी नगर में एक ऐसा व्यक्ति रहता था जिसका खाने पीने और इन्द्रियों के दूसरे धंधों के सिवाय और कोई काम नहीं था । किसी ने महात्मा जी से उसका नाम लेकर पूछा कि क्या आप उसको भी अध्यात्म के मार्ग पर चला सकते है ? उन्होंने उत्तर दिया, हां। परन्तु पहले तो उसको झूठ बोलना सिखला दो। अभी तो उसका चित्त इतना भी प्रयास नहीं करता जितना कि झूठ बोलने के लिए आवश्यक है।

 क्षिप्त

क्षिप्त का अर्थ है फेंका हुआ । क्षिप्त चित्त में रजोगुण का बाहुल्य होता है । वह एक जगह टिकता ही नहीं। कुछ न कुछ करते रहना यही उसकी चर्या है। ऐसा मनुष्य बैठकर अपने अच्छे बुरे कामों के परिणामों को भी सोच नहीं सकता ।

 विक्षिप्त

विक्षिप्त चित्त में रजोगुण के साथ साथ सत्त्वगुण का भी मिश्रण होता है। ऐसा चित बहुत सी बातों में लगा तो रहता है परन्तु कभी कभी किसी एक विषय पर अधिक देर तक केन्द्रीभूत भी हो जाता है और इसके साथ साथ अपने कामों के परिणामों की ओर भी ध्यान देने का प्रयत्न करता है।

 एकाग्र

यह शब्द तो सामान्य बोलचाल में भी माता है। एकाग्र का अर्थ है किसी एक विन्दु पर केन्द्रीभूत होना। एकाग्र चित्त में सत्वगुण की प्रधानता रहती है। वह किसी एक विषय पर बहुत देर तक टिकता है और प्रायः काम करने के पहले बुद्धि को उसके सम्बन्ध में विचार करने का अवसर देता है। साधारणतः इस शब्द का व्यवहार आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में किया जाता है। परन्तु एकाग्रता केवल माध्यात्मिक जीवन तक सीमित नहीं है। जिस समय गणित या विज्ञान का विद्वान् किसी गम्भीर समस्या पर विचार करता है उस समय उसका वित्त भी पूर्णतया एकाय होता है।

निरुद्ध

निरुद्ध का अर्थ है रोक दिया गया। जिसकी गति बन्द कर दी गयी हो वह निरुद्ध कहलायेगा। यदि किसी के चित्त की गति बन्द हो जाय अर्थात् उसमें वृत्तियों का उठना बन्द हो जाय, प्रज्ञानों का प्रवाह रुक जाय, तो वह चित्त निरुद्ध कहलायेगा । हम ऊपर चित्त के सम्बन्ध में जो लिख आये हैं उससे यह स्पष्ट है कि यदि क्षण भर के लिए भी चित्त का प्रवाह रुका तो फिर वह सदा के लिए रुक जायगा। जब तक संस्कार बचे हुए हैं तब तक नष्ट होनेवाला प्रज्ञान अपने संस्कार अपने परवर्ती को दे जायगा । जब तक संस्कार बचे हुए हैं तब तक प्रज्ञानों की धारा बहती रहेगी। जब हस्तांतरित करने को संस्कार बचेगा ही नहीं तब यह धारा रुकेगी। निरुद्ध शब्द के अर्थ को गहिराई के बिना समझे सूत्र का अर्थ स्पष्ट नहीं होता।