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कठोपनिषद्

प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
(दसवां मन्त्र)
10th Mantra of second Valli (Kathopanishada)
जानाम्यहं शेवधिरित्यनित्यं न ह्यध्रुवैः प्राप्यते हि ध्रुवं तत्।
ततो मया नाचिकेतश्चितोमन्गिरनित्यैर्द्रव्यैः प्राप्तवानस्मि नित्यम्॥ १०॥

(मैं जानता हूँ कि धन, ऐश्वर्य अनित्य है। निश्चय ही अस्थिर साधनों से वह अचल तत्त्व (आत्मा) प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतएव मेरे द्वारा नाचिकेत अग्नि का चयन किया गया और मैं अनित्य पदार्थों के द्वारा नित्य (ब्रह्म) को प्राप्त हो गया हूँ।)
Nachiketa agreed: “I know that earthly treasures are temporary because the eternal can never be attained by things which are non-eternal.  There for the Nachiketa fire (sacrifice) has been performed by me with transient things, I have obtained the eternal.”

कठोपनिषद्

प्रथम अध्याय द्वितीय बल्ली
(नौवाँ मन्त्र)

9th Mantra of Second Valli (Kathopanishada)
नैषा तर्केण मतिरापनेया प्रोक्तान्येनैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ।
यां त्वमापः सत्यधृतिर्बतासि त्वादृक् नो भूयान्नचिकेतः प्रष्टा॥ ९॥

(हे परमप्रिय नचिकेता ! यह बुद्धि, जिसे तुमने प्राप्त किया है, तर्क से प्राप्त नहीं होती। अन्य (विद्वान्) के द्वारा कहे जाने पर भली प्रकार समझ में आ सकती है। वास्तव में, नचिकेता, तुम सत्यनिष्ठ हो। तुम्हारे सदृश प्रश्न पूछनेवाले हमें मिलें।)

This awakening you have known comes not through argument but It is truly known only when taught by another enlightened scholar (Who realized the supreme being). O beloved Nachiketa! You are indeed a man of real determination because you seek the Self eternal. May we have more seekers like you!

कठोपनिषद

प्रथम अध्याय द्वितीय बल्ली
(सातवाँ मन्त्र)
7th Mantra of second Valli (Kathopanishada)
श्रवणायापि बहुरभिर्यो न लक्ष्यः श्रृण्वन्तोपि बहवो यं न विद्युः।
आश्चर्यो वक्ता कुशलोस्य लब्धाश्चर्यो ज्ञाता कुशलानुशिष्टः॥ ७॥
जो (आत्मज्ञान‌) बहुत से मनुष्यों को सुनने को भी नहीं मिलता, बहुत से मनुष्य सुनकर भी जिसे समझ नहीं पाते, इस आत्म-ज्ञान का वक्ता आश्चर्यमय है, प्रवीण पुरुष से उपदेश पाया हुआ (आत्मतत्त्व का) जानने वाला पुरुष आश्चर्यमय है।
There are so many people who do not even hear of Atman (Self knowledge), many can’t understand even after hearing about Him. Wonderful is the one who speaks about the Self and wonderful the listener who attain to self realization through an illumined teacher.

कठोपनिषद


13th Mantra of Kathopanishada
 (तेरहवां मन्त्र)

स त्वमग्नि स्वर्ग्यमध्येषि मृत्यों प्रब्रूहि त्वं श्रद्दधानाय मह्यम।
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त एतद् द्वितीयेन वृणे वरेण ॥१३॥



(नचिकेता ने कहा) हे मृत्युदेव, आप स्वर्गप्राप्ति की साधनरुप अग्नि को जानते हैं। आप मुझ श्रद्धालु को उसे बता दें। स्वर्गलोक के निवासी अमरत्व को प्राप्त होते हैं। मैं यह दूसरा वर मांगता हूं।


(Nachiketa said :) “O Death! You know the fire of sacrifice which leads to heaven, so describe it to me because my heart is filled with faith. They (who live in the realm of heaven) achieve immortality. This I beg as my second boon.”

कठोपनिषद

10th Mantra of Kathopanishada.

(दसवां मन्त्र)

शान्तसकल्प: सुमना यथा स्याद्वीतमन्युगौर्तमों माभि मृत्यो।
त्वत्प्रसृष्टं माभिवदेत्प्रतीत एतत्त्रयाणां प्रथमं वरं वृणे ॥१०॥

(नचिकेता ने उत्तर दिया) हे (यम) मृत्युदेव, गौतमवंशीय (मेरे पिता) उद्दालक मेरे प्रति शान्त संकल्पवाले, प्रसन्नचित और क्रोधरहित हो जायं, आपके द्वारा वापस भेजे जाने पर वे मुझ पर विश्वास करते हुए मेरे साथ प्रेमपूर्वक बात करें, (मैं) यह तीन में से प्रथम वर मांगता हूं।

Nachiketa replies: “O Yama(the Ruler of death)! My father, Gotham (Uddhalak), be free from anxious thought (about me). May he lose all anger (towards me) and be pacified in heart, and that he may know me and greet me, when I shall be sent away by you."