द्वितीय अध्याय
तृतीय वल्ली
(अठारहवाँ मन्त्र)
मृत्युप्रोक्तां नचिकेतोऽथ लब्ध्वा विद्यामेतां योगविधिं च कृत्स्त्रम्।
ब्रह्मप्राप्तो विरजोऽभूद्विमृत्युरन्योऽप्येवं यो विदध्यात्ममेव।।१८।।
इसको (सुनने के) पश्चात् नचिकेता यम द्वारा बतलाई गयी इस विद्या को और पूरी योग विधि को प्राप्त करके मृत्यु से रहित, विकारों से मुक्त होकर ब्रह्म को प्राप्त हो गया। अन्य कोई भी जो इस अध्यात्मविद्या को इस प्रकार से जानने वाला है, वह भी ऐसा ही हो जाता है।
इस ब्लॉग पर पढ़ें प्राचीन उपनिषदों का सार, रहस्यमयी कथाएँ और वेदांत दर्शन की गहन शिक्षाएँ – हिंदी में सरल व्याख्या के साथ। जानें आत्मा, परमात्मा और जीवन के परम सत्य को उपनिषदों के माध्यम से।
कठोपनिषद्
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं