द्वितीय अध्याय
तृतीय वल्ली
(चौदहवाँ मन्त्र)
यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामायेऽस्यहृदिश्रिताः।
अथ मर्त्योऽमृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते ॥१४॥
(जब इस (मनुष्य) के हृदय में स्थित सब कामनाएँ छूट (मिट) जाती हैं, तब मरणधर्मा मनुष्य अमृत (स्वरुप) हो जाता है। (वह) यहीं ब्रह्म का रसास्वादन कर लेता है।)
इस ब्लॉग पर पढ़ें प्राचीन उपनिषदों का सार, रहस्यमयी कथाएँ और वेदांत दर्शन की गहन शिक्षाएँ – हिंदी में सरल व्याख्या के साथ। जानें आत्मा, परमात्मा और जीवन के परम सत्य को उपनिषदों के माध्यम से।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें