उपनिषद की प्रेरणादायक कथा: नचिकेता और यमराज (कठोपनिषद से)
लेखक: अनंतबोध चैतन्य | श्रेणी: आध्यात्मिक ज्ञान | भाषा: हिंदी
परिचय
भारतीय दर्शन और आत्मज्ञान की परंपरा में उपनिषदों का स्थान अत्यंत ऊँचा है। इन ग्रंथों में आत्मा, ब्रह्म और जीवन-मरण के गूढ़ रहस्यों पर गहन संवाद होते हैं। आज की इस पोस्ट में हम एक ऐसी ही प्रसिद्ध कथा पर ध्यान देंगे — नचिकेता और यमराज की संवाद-गाथा, जो कठोपनिषद से ली गई है।
कथा की शुरुआत: जिज्ञासु बालक नचिकेता
बहुत समय पहले, एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण ऋषि वाजश्रवस ने स्वर्ग की प्राप्ति के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। वे अपनी सम्पत्ति दान कर रहे थे, लेकिन पुत्र नचिकेता ने देखा कि पिता जी बूढ़ी और अशक्त गायों का ही दान कर रहे हैं — जो किसी के काम की नहीं थीं।
नचिकेता ने बार-बार उनसे पूछा:
"पिताजी! आप मुझे किसे दान देंगे?"
पिता क्रोधित होकर बोले:
"मैं तुम्हें यमराज को देता हूँ!"
पिता के शब्दों को सत्य मानकर, नचिकेता बिना भय के यमलोक की ओर चल पड़ा।
यमलोक में तीन दिन का उपवास
जब नचिकेता यमलोक पहुँचा, तो यमराज वहाँ नहीं थे। वह तीन दिन तक बिना भोजन किए द्वार पर बैठा रहा। जब यमराज लौटे और देखा कि एक ब्राह्मण अतिथि भूखा बैठा है, तो उन्होंने क्षमा माँगी और तीन वर देने का वचन दिया — एक प्रत्येक दिन के प्रतीक रूप में।
तीन वरदानों की मांग
1. पहला वरदान – पिता की शांति:
नचिकेता ने माँगा कि उनके पिता शांत मन से उन्हें स्वीकार करें और उन्हें कोई क्रोध न रहे।
यमराज ने कहा:
"तथास्तु! तुम्हारे पिता तुम्हें प्रेमपूर्वक स्वीकार करेंगे।"
2. दूसरा वरदान – यज्ञ विद्या:
नचिकेता ने ‘स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाले यज्ञ’ का ज्ञान माँगा।
यमराज ने उसे 'नचिकेता अग्नि यज्ञ' की विधि बताई, जो मृत्यु के पार जाने का एक प्रतीक था।
3. तीसरा वरदान – मृत्यु के बाद क्या होता है?
यह सबसे गूढ़ प्रश्न था:
"मृत्यु के बाद आत्मा रहती है या नहीं?"
यमराज ने उसे अनेक प्रकार के भौतिक सुखों की लालच दी — धन, सौंदर्य, दीर्घायु — लेकिन नचिकेता अडिग रहा। उसने कहा:
"हे यमराज! ये सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। मुझे केवल आत्मा और मृत्यु के रहस्य की ही जिज्ञासा है।"
यमराज का उत्तर: आत्मा का रहस्य
यमराज ने प्रसन्न होकर आत्मा का गूढ़ ज्ञान दिया:
"आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
यह न कभी उत्पन्न हुई है, न नष्ट होती है।
जो इसे जान लेता है, वह मृत्यु और भय से परे चला जाता है।"
उन्होंने यह भी कहा कि आत्मा का ज्ञान केवल उसी को होता है जो शुद्ध, सत्यनिष्ठ और जिज्ञासु हो।
कथा से प्राप्त शिक्षा
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सच्चा जिज्ञासु कभी भटकता नहीं।
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आत्मा का ज्ञान ही सच्चा मोक्ष है।
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भौतिक सुख क्षणिक हैं, आत्मज्ञान शाश्वत है।
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गुरु या मृत्यु के समान कठोर सत्य ही वास्तविक ज्ञान दे सकते हैं।
निष्कर्ष
कठोपनिषद की यह कथा हमें यह सिखाती है कि एक साधारण बालक भी यदि सच्ची जिज्ञासा और सत्य की खोज में अडिग रहे, तो ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। नचिकेता आज भी उन सभी seekers के लिए प्रेरणा हैं जो आत्मा, परमात्मा और मृत्यु के पार की दुनिया को समझना चाहते हैं।