कठोपनिषद

27th Mantra of Kathopanishada.
(सत्ताइस्वाँ मन्त्र)
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत् त्वा।
जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं वरस्तु मे वरणीय: स एव॥२७॥
(नचिकेता ने कहा) मनुष्य धन से तृप्त नहीं होता। जब (हमने) आपके दर्शन पा लिये हैं, तो धन (भी) हम प्राप्त ही कर लेंगे। जब तक आप चाहेंगे हम जीवित भी रहेंगे। इसलिए मुझको तो वह वर ही माँगना है।
(Nachiketa said :) “Man can never be satisfied with material things (because desire comes next by next even if one fulfilled. The next desire will start at the immediate moment). Now that I have seen you (Death), I shall obtain wealth as it is. As long as you rule I shall live. Therefore that boon alone wants to achieve.”

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