(कठोपनिषद का उन्तीसवाँ मन्त्र)
यस्मिन्निदं विचिकित्सन्ति मृत्यो यत्साम्पराये महति ब्रूहि नस्तत्।योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो नान्यं तस्मान्नचिकेता वृणीते ॥२९॥
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु) ! जिस विषय में यह (कि मरने के बाद आत्मा रहता या नहीं) सन्देह होता है,जो महान् परलोक-विज्ञान में है,उसको हमारे लिए कहो। जो यह गूढ रहस्यमय (सूक्ष्म) वर मेरे मन में समाया हुआ है उससे भिन्न अन्य (वर को) नचिकेता नहीं माँगता।
(Nachiketa said :) ”O Death! Regarding which there is doubted that what's in the afterlife (concerning the Soul), that sure knowledge of the other world is that which I want to know. Nachiketa asks for no other boon.”
योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो नान्यं तस्मान्नचिकेता वृणीते ॥२९॥
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु) ! जिस विषय में यह (कि मरने के बाद आत्मा रहता या नहीं) सन्देह होता है,जो महान् परलोक-विज्ञान में है,उसको हमारे लिए कहो। जो यह गूढ रहस्यमय (सूक्ष्म) वर मेरे मन में समाया हुआ है उससे भिन्न अन्य (वर को) नचिकेता नहीं माँगता।
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु) ! जिस विषय में यह (कि मरने के बाद आत्मा रहता या नहीं) सन्देह होता है,जो महान् परलोक-विज्ञान में है,उसको हमारे लिए कहो। जो यह गूढ रहस्यमय (सूक्ष्म) वर मेरे मन में समाया हुआ है उससे भिन्न अन्य (वर को) नचिकेता नहीं माँगता।
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