कठोपनिषद्

प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली

(ग्यारहवां मन्त्र)

कामस्याप्तिं जगतः प्रतिष्ठां क्रतोरनन्त्यमभयस्य पारम्।
स्योममहदुरुगायं प्रतिष्ठां दृष्टवा धृत्या धीरो नचिकेतोत्यस्त्राक्षीः॥ ११॥

(हे नचिकेता ! तुमने भोग सम्बन्धी कामनाओं की प्राप्ति को, जगत की प्रतिष्ठा को, यज्ञादि के फल को, लौकिक निर्भीक्ता की पराकाष्ठा को, स्तुति योग्य महिमा और प्रतिष्ठा को, वेदों में जिसका गुणगान है ऐसे स्वर्ग को, (असार) देखकर स्थिरता के साथ (धैर्य पूर्वक विचार करके) छोड़ दिया है (इसलिए तुम) धीर (ज्ञानी) हो।)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें