कठोपनिषद

कठोपनिषद
(पांचवां मन्त्र)
5th Mantra of Second Valli (Kathopanishada)
अविद्यायामन्तरे वर्तमानः स्वयं धीराः पण्डितम्मन्यमानाः।
दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ॥५॥
(अविद्या के भीतर ही रहते हुए, स्वयं को धीर और पण्डित माननेवाले मूढजन, भटकते हुए चक्रवत् घूमते रहते हैं, जैसे अन्धे से ले जाते हुए अन्धे मनुष्य।)
 “Those fool who are dwelling in darkness and thinking themselves wise and masters (of knowledge). They go round and round on a tortuous path never they reach their ultimate destination, like the blind lead by the blind.”

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