कठोपनिषद

(चौथा मन्त्र) प्रथम अध्याय द्वितीय बल्ली
4th Mantra of Second Valli Of Kathopanishada
दूरमेते विपरीत विषूची अविद्या या च विद्येति ज्ञाता।
विद्याभीप्सितं नचिकेतसं मन्ये न त्वा कामा बहवोऽलोलुपन्त ॥४॥
[(यमराज ने कहा) जो अविद्या (प्रेयमार्ग) और विद्या (श्रेयमार्ग) नाम से जाने जाते हैं, ये (दोनों) अत्यन्त विपरीत हैं। (ये) भिन्न-भिन्न फल देनेवाले हैं। मैं तुम नचिकेता को विद्या का अभिलाषी मानता हूँ, (क्योंकि) तुम्हें बहुत से भोग लुब्ध न कर सके।]
(Yama Said): "Very separate, leading to different ends are these two: ignorance (Avidya) and what is known as Knowledge (Vidya). O Nachiketa! I agree that you are the one in search of knowledge since you are not interested in fulfilling all the worldly, material desires that I offered to grant you.”

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