कठोपनिषद

3rd Mantra 
(तृतीय मन्त्र)

स त्वं प्रियान् प्रियरूपांश्च कामानभिध्यायन्नचिकेतोऽत्यस्त्राक्षीः।
नैतां सृडकां वित्तमयीमवाप्तो यस्यां मज्जन्ति बहवो मनुष्याः ॥३॥
(यमराज ने कहा) हे नचिकेता ! वह तुम हो कि जिसने प्रिय प्रतीत होने वाले और प्रिय रूपवाले भोगों को सोच-समझकर छोड़ दिया, इस बहुमूल्य रत्नमाला को भी स्वीकार नहीं किया जिस (के प्रलोभन) में अधिकांश लोग फँस जाते हैं।
(Yama said) "O Nachiketa! You wisely renounced what was appear as pleasurable or what was of the form of pleasure, you have not even accepted this necklace with valuable pearls, to which majority of the people greedily attached to." 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें