द्वितीय अध्याय
तृतीय वल्ली
(सोलहवाँ मन्त्र)
शतं चैका च हृदयस्य नाडयस्तासां मूर्धानमभिनिःसृतैका।
तयोर्ध्वमायन्नमृतत्वमेति विष्वङ्डन्या उत्क्रमणे भवन्ति ॥१६॥
हृदय की ओर (जाने वाली) सौ और एक नाडियाँ हैं। उनमें से एक (सुषुम्ना) मूर्धा (कपाल) की ओर निकली हुई है। उसके द्वारा (आरोहण करते हुए) ऊपर जाकर (जीवात्मा) अमृतभाव को प्राप्त हो जाता है। अन्य (सौ) नाडियाँ मरण-काल में (जीवात्मा को) नाना योनियों में जाने का हेतु होती हैं।
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कठोपनिषद्
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