ईशावास्योपनिषद

5th Mantra Of Isa-Upanishad

तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः॥५॥

(वह आत्मतत्त्व चलता है और नहीं भी चलता । वह दूर है और समीप भी है । वह सबके अंतर्गत है और वही इस सबके बाहर भी है (अर्थात वह परमात्मा सृष्टि के कण कण में व्याप्त है )॥5॥)

It (the Atman) moves and It moves not. It is distant and also It is near. It is within all this and It is also outside all this.

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