4th Mantra of Isa-Upanishad
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥४॥
(वह आत्मतत्त्व अपने स्वरूप से विचलित न होनेवाला, एक तथा मन से भी तीव्र गतिवाला है । इसे इंद्रियाँ प्राप्त नहीं कर सकतीं क्योंकि यह उन सबसे पहले (आगे) गया हुआ है । वह स्थिर होनेपर भी अन्य सब गतिशीलों को अतिक्रमण कर जाता है । उसके रहते हुए ही वायु समस्त प्राणियों के प्रवृत्ति रूप कर्मों का विभाग करता है ॥4॥)
That One (Atman), though motionless, is faster than the mind. The senses (Devas) can never overtake It, for It ever goes before. Though immovable, It goes faster than those who run after It. By It the all-pervading the air (Matarisvan) sustains all living beingsतद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥४॥
(वह आत्मतत्त्व अपने स्वरूप से विचलित न होनेवाला, एक तथा मन से भी तीव्र गतिवाला है । इसे इंद्रियाँ प्राप्त नहीं कर सकतीं क्योंकि यह उन सबसे पहले (आगे) गया हुआ है । वह स्थिर होनेपर भी अन्य सब गतिशीलों को अतिक्रमण कर जाता है । उसके रहते हुए ही वायु समस्त प्राणियों के प्रवृत्ति रूप कर्मों का विभाग करता है ॥4॥)
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