कठोपनिषद

6th Mantra of Kathopanishada
(छठा मन्त्र)
अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथापरे।
सस्यमिव मर्त्य: पच्यते सस्यमिवाजायते पुन: ॥६॥
अपने पूर्वजों के आचरण का चिन्तन कीजिये, उसके पश्चात अर्थात वर्तमान में किये गए (श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण) पर भी दृष्टिपात कीजिये। मरणधर्मा मनुष्य फसल की भांति पकता है (वृद्ध होता और मृत्यु को प्राप्त होता है ) तथा फसल की भांति ही फिर उत्पन्न होता है।
Nachiketa said "think of the way those before us acted, look behavior of the persons who are with us in present, also look at the actions of other people. Like a crop man ripens (dies) and like crop springs up (reborn) again".

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