कठोपनिषद

25th Mantra of Kathopanishada

(पचीसवाँ मन्त्र)

ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान् कामांश्छन्दत: प्रार्थयस्व।
इमा रामा: सरथा: सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यै:।
आभिर्मत्प्रत्ताभि: परिचारयस्व् नचिकेतो मरणं मानुप्राक्षी ॥२५॥

(यमराज ने कहा) संसार (
मृत्युलोक) में जो जो भोग (कामनायें) दुर्लभ हैं उन सब भोगों को इच्छानुसार मांग लो रथों सहित बाजों (वाद्यों) के साथ इन स्वर्ग की अप्सराओं (रमणीय स्त्रियों) को मांग लो, मेरे द्वारा प्रदत्त इनसे अपनी सेवा कराओ(निश्‍चय ही) ऐसी स्त्रियॉँ साधारण मनुष्यों द्वारा प्राप्य नहीं हैं हे नचिकेता ! मृत्यु के संबंध में मत पूछो
.
(Yama said): “Choose for the desires which are difficult to satisfy in the world of mortals. Here you have these maidens with instruments and chariots. They (their beauty) cannot be even dreamt of by human beings. They shall serve you. O Nachiketa! I can grant you all of the above things. But do not ask me questions concerning death.”

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