कठोपनिषद

21th Mantra of Kathopanishada

(इक्कीसवां मन्त्र)

देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा, न हि सुविज्ञेयमणुरेष धर्मः
अन्यं वरं नचिकेतो वृणीष्‍व, मा मोपरोत्सीरति मा सृजैनम् २१

(यमराज ने कहा) इस विषय में पहले विद्वानों ने भी सन्देह किया था निश्‍चय ही यह विषय अत्यन्त सूक्ष्म होने से सुगमता से जानने योग्य नहीं है, इसलिए हे नचिकेता ! कोई और वर माँग लोमुझ पर ऋणी के तुल्य दबा मत डालोइस वर को छोड़ दो

Yama replied: “In older times even the Devas (Bright Ones) had their doubts regarding this. It is not easy Knowledge (Gyana) to know; subtle indeed is this subject. O Nachiketa, choose another boon. Do not press me. Ask not this boon of me”

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