8th Mantra of kathopanishad.
(आठवां मन्त्र)
आशा प्रतीक्षे संगतं सूनृतां च इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान्।
एतद् वृड्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे ॥८॥
एतद् वृड्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे ॥८॥
(यमराज की पत्नी ने यमराज से कहा) जिसके घर में ब्राह्मण बिना भोजन किये रहता है (उस) मन्दबुद्धि पुरुष की आशा और प्रतीक्षा, उनकी पूर्ति से प्राप्त् होनेवाले सुख, सुन्दर वाणी के फल, इष्ट एवं आपूर्त शुभ कर्मो के फल तथा सब पुत्र और पशु आदि (ब्राह्मण के असत्कार से ) नष्ट हो जाते हैं।
In the house of that foolish man which a Brahmin guest stays without taking any food, all his hopes and expectations, all the merit gained by his association with the holy , the fruits of his pious utterances, and the fruits of his good deeds, sacrifices, as well as his sons and cattle all are destroyed by him.
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