17th Mantra Of Isa-Upanishad.
वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतँ शरीरम्।
ॐ क्रतो स्मर कृतँ स्मर क्रतो स्मर कृतँ स्मर॥१७॥
मेरा प्राण सर्वात्मक वायु रूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो क्योकि वह शरीरों में आने जाने वाला जीव अमर है ;और यह शरीर केवल भस्म पर्यन्त है इसलिये अन्त समय में हे मन ! ओउम् का स्मरण कर, अपने द्वारा किए हुये कर्मों स्मरण कर, ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किये हुए कर्मों का स्मरण कर॥१७॥
Let my Air (Paraná) to achieve all-pervading Air, the eternal Sutratman because The Breath of all being(Atmatatva) is an immortal, and let this body be burnt by fire to aches. O mind! Remember AUM , that which was done! O mind! Remember AUM, Remember that which was done .
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