14th Mantra of Kathopanishada.
(चौदहवां मन्त्र)
(चौदहवां मन्त्र)
प्र ते ब्रवीमि तदु मे निवोध स्वर्ग्यमग्निं नचिकेत: प्रजानन्।
अनन्तलोकाप्तिमथो प्रतिष्ठां विद्धि त्वमेतं निहितं गुहायाम् ॥१४॥
(यमराज ने कहा) हे नचिकेता ! स्वर्गप्राप्ति की साधनरुप अग्निविद्या को भली प्रकार जाननेवाला मैं तुम्हें इसे बता रहा हूं। (तुम) उसे भली प्रकार मुझसे जान लो। तुम इस (विद्या) को अनंत लोक की प्राप्ति करानेवाली, उसकी आधाररुपा और बुद्धिरुपी गुहा मे स्थित जानो।
अनन्तलोकाप्तिमथो प्रतिष्ठां विद्धि त्वमेतं निहितं गुहायाम् ॥१४॥
(यमराज ने कहा) हे नचिकेता ! स्वर्गप्राप्ति की साधनरुप अग्निविद्या को भली प्रकार जाननेवाला मैं तुम्हें इसे बता रहा हूं। (तुम) उसे भली प्रकार मुझसे जान लो। तुम इस (विद्या) को अनंत लोक की प्राप्ति करानेवाली, उसकी आधाररुपा और बुद्धिरुपी गुहा मे स्थित जानो।
(Yama replied :) I know the fire (Agni) that leads to heaven and shall explain it to you. Listen to me. Know it (Agni Vidya), O Nachiketa, which he reached the infinite universe, It is hidden in the heart of all beings."
O Nachiketa! I am the knower of that sacrifice which can give heaven, I will tell you all. You understand it better from me. Know that (sacrifice) as the giver of infinite universes, the substratum of that (infinite universe) and reside in the cave of intellect (pure intellect).
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