कठोपनिषद

2nd Mantra of Kathopanishad.

तं ह कुमारं सन्तं दक्षिणासु नीयमानसु श्रद्धा आविवेश सोऽमन्यत ॥२॥
 
While these dakshinas (offerings to be given on the occasion of the yagana) were being distributed, faith (Shraddha) entered in (the heart of) the young boy (Kumar) Nachiketa, he thought.

जिस समय दक्षिणा (यज्ञ के अवसर पर दी जाने वाली भेंट) दी जा रही थी, तब छोटे बालक (कुमार) नचिकेता (के ह्रदय) में श्रद्धाभाव (सात्त्विक-भाव) उत्पन्न हो गया, उसने चिन्तन किया ॥

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