कठोपनिषद

26th Mantra of Kathopanishada.
(छब्बीसवां मन्त्र)         
श्वो भावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत् सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेज:।
अपि सर्वम् जीवितमल्पेमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥२६॥

(
नचिकेता ने कहा ) हे यमराज (मृत्यु) ! यह कल तक ही रहनेवाले (नश्वर) भोग मरणशील मनुष्य की समस्त इन्द्रियों के तेज को क्षीण कर देते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त जीवन थोड़ा ही है। (इसलिए) आपके रथादि वाहन, स्वर्ग के नृत्य और संगीत आपके ही पास रहें।
Nachiketa said :) “O (Lord) Yama! “These things last till tomorrow (ephemeral), and they weaken the vigor of all the senses in man. Even the longest life is short. Keep your vehicles and your songs and dances (I have no interest in them).”

कठोपनिषद

25th Mantra of Kathopanishada

(पचीसवाँ मन्त्र)

ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान् कामांश्छन्दत: प्रार्थयस्व।
इमा रामा: सरथा: सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यै:।
आभिर्मत्प्रत्ताभि: परिचारयस्व् नचिकेतो मरणं मानुप्राक्षी ॥२५॥

(यमराज ने कहा) संसार (
मृत्युलोक) में जो जो भोग (कामनायें) दुर्लभ हैं उन सब भोगों को इच्छानुसार मांग लो रथों सहित बाजों (वाद्यों) के साथ इन स्वर्ग की अप्सराओं (रमणीय स्त्रियों) को मांग लो, मेरे द्वारा प्रदत्त इनसे अपनी सेवा कराओ(निश्‍चय ही) ऐसी स्त्रियॉँ साधारण मनुष्यों द्वारा प्राप्य नहीं हैं हे नचिकेता ! मृत्यु के संबंध में मत पूछो
.
(Yama said): “Choose for the desires which are difficult to satisfy in the world of mortals. Here you have these maidens with instruments and chariots. They (their beauty) cannot be even dreamt of by human beings. They shall serve you. O Nachiketa! I can grant you all of the above things. But do not ask me questions concerning death.”

कठोपनिषद

24th Mantra of Kathopanishada.
(चौबीसवां मन्त्र)
एतत्तुल्यं यदि मन्यसे वरं वृणीष्व वित्तं चिरजीविकां च।
महाभूभौ नचिकेतस्त्वमेधि कामानां त्वा कामभाजं करोमि॥२४॥
(यमराज ने कहा) यदि तुम इस वर के तुल्य (किसी अन्य) वर को मांगना चाहते हो तो मांग लो धन और चिरजीविका को माँग लो। हे नचिकेता! तुम इस महान् पृथ्वी पर वृद्धि करो, शासन करो तुम्हें (समस्त) कामनाओं का भोग करने वाला बना देता हूँ |
(Yama said): “If you consider any boon equal to this, demand wealth and long life, and be the ruler over the wide Earth. O Nachiketa, I shall make you the enjoyer of your all desires.”

कठोपनिषद

23rd Mantra of Kathopanishada
(तेइसवां मन्त्र)

शतायुष: पुत्रपौत्रान् वृणीष्व बहून् पशून् हस्तिहिरण्यमश्वान्।
भूमेर्महदायतनं वृणीष्व स्वयं च जीव शरदो यावदिच्छसि ॥२३॥

(यमराज ने नचिकेता से कहा) सौ वर्ष जीने वाले पुत्र और पौत्रों को माँग लो बहुत से पशुओं को, घोड़े, हाथी, सुवर्ण, पृथ्वी के बड़े विस्तार को माँग लो और तुम स्वयं भी जितने वर्ष इच्छा करे जीवित रहो

(Yama said): “O Nachiketa! Choose sons and grandsons who may live a hundred years, choose for a wealth of animals, for elephants, for gold and horses, choose for the entire Earth, and live yourself as long as you wish.”

कठोपनिषद

22th Mantra of Kathopanishada
(बाइसवां मन्त्र)
देवैरत्रापि विचिकित्सितं किल त्वं च मृत्यों यत्र सुविज्ञेममात्थ।
वक्ता चास्य त्वादृगन्यों न लभ्यो नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित् ॥२२॥
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु)! आपने जो कहा कि इस विषय में देवों ने भी सन्देह किया था और तुम (नचिकेता) ने भी और यह (विषय) सुगमता से जानने योग्य नहीं है, परन्तु इस विषय का उपदेश करने वाला आपके तुल्य और कोई मिल नहीं सकता और इस वर के सदृश अन्य कोई वर नहीं है।
(Nachiketa said): “O Death! Surely, in this subject even the gods (Devas) had doubts, and also that this cannot be understood easily. Thus there can be no better teacher of this subject than you (who is the authority on this). Therefore no other boon can be equal to this one.

कठोपनिषद


22th Mantra of Kathopanishada
(बाइसवां मन्त्र)
देवैरत्रापि विचिकित्सितं किल त्वं च मृत्यों यत्र सुविज्ञेममात्थ।
वक्ता चास्य त्वादृगन्यों न लभ्यो नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित् ॥२२॥
(नचिकेता ने कहा) हे यमराज (मृत्यु)! आपने जो कहा कि इस विषय में देवों ने भी सन्देह किया था और तुम (नचिकेता) ने भी और यह (विषय) सुगमता से जानने योग्य नहीं है, परन्तु इस विषय का उपदेश करने वाला आपके तुल्य और कोई मिल नहीं सकता और इस वर के सदृश अन्य कोई वर नहीं है।
(Nachiketa said): “O Death! Surely, in this subject even the gods (Devas) had doubts, and also that this cannot be understood easily. Thus there can be no better teacher of this subject than you (who is the authority on this). Therefore no other boon can be equal to this one.

कठोपनिषद

21th Mantra of Kathopanishada

(इक्कीसवां मन्त्र)

देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा, न हि सुविज्ञेयमणुरेष धर्मः
अन्यं वरं नचिकेतो वृणीष्‍व, मा मोपरोत्सीरति मा सृजैनम् २१

(यमराज ने कहा) इस विषय में पहले विद्वानों ने भी सन्देह किया था निश्‍चय ही यह विषय अत्यन्त सूक्ष्म होने से सुगमता से जानने योग्य नहीं है, इसलिए हे नचिकेता ! कोई और वर माँग लोमुझ पर ऋणी के तुल्य दबा मत डालोइस वर को छोड़ दो

Yama replied: “In older times even the Devas (Bright Ones) had their doubts regarding this. It is not easy Knowledge (Gyana) to know; subtle indeed is this subject. O Nachiketa, choose another boon. Do not press me. Ask not this boon of me”

कठोपनिषद

20th Mantra of Kathopanishada
(बीसवां मन्त्र)
येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तीति चैके।
एतद्विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहं वराणामेष वरस्तृतीय: ॥२०॥
मृतक मनुष्य के संबंध में यह जो संशय है कि कुछ लोग कहते हैं कि यह आत्मा (मृत्यु के पश्चात) रहता है और कुछ लोग कहते हैं कि नहीं रहता, आपसे उपदेश पाकर मैं इसे जान लूं, यह वरों मे यह तीसरा वर है।
(Nachiketa said): "There is that doubt when a man is dead some people say that they remain (that they exist) and some say that they do not. This knowledge I desire, being instructed by you (Death). This is the third of my boons." 

कठोपनिषद

19th Mantra Of Kathopanishada
(उन्नीसवां मन्त्र)
एष तेऽग्निर्नचिकेत: स्वर्ग्यो यमवृणीथा द्वितीयेन वरेण।
एतमग्निं तवैव प्रवक्ष्यन्ति जनासस्तृतीयं वरं नचिकेतो वृष्णीष्व॥१९॥
हे नचिकेता ! तुमसे कही हुई यह स्वर्ग की साधन रुपा अग्नि विद्या है, जिसे तुमने दूसरे वर से मांगा था। इस अग्नि को लोग तुम्हारे नाम से (नाचिकेत अग्नि) कहा करेंगे। हे नचिकेता, तीसरा वर मांगों।
(Yama said :) “O Nachiketa! The fire which leads to heaven, for which you asked for with the second boon, has been told to you. People shall call this fire yours (Nachiketas Agni). Ask now for the third boon.”

कठोपनिषद

18th Mantra of Kathopanishada

(अठारहवां मन्त्र)

त्रिणाचिकेतस्त्रयमेतद्विदित्वा य एवं विद्वांश्चिनुते नाचिकेतम्।
स मृत्यृपाशानृ पुरत: प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके ॥१८॥

इन तीनों (ईंटों के स्वरुप संख्या और चयन-विधि) को जानकर तीन बार नाचिकेत अग्नि का अनुष्ठान करनेवाला जो भी विद्वान पुरुष नाचिकेत अग्नि का चयन करता है, वह (अपने जीवनकाल मे ही) मृत्यु के पाशों को अपने सामने ही काटकर, शोक को पार कर, स्वर्गलोक में आनन्द का अनुभव करता है।

“That one who knows the three-fold aspects of Nachiketa Agni  and abides by these three things and properly performs the worship of Nachiketa Agni (Fire sacrifice), with three-fold knowledge, throws of the chain of birth and death, goes beyond sorrows and rejoice in heaven.” 

kathopanishada,


17th Mantra of Kathopanishada.
(सत्रहवां मन्त्र)
त्रिणाचिकेतस्त्रिभिरेत्य सन्धिं त्रिकर्मकृत् तरति जन्ममृत्यू।
ब्रह्मजज्ञ। देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमां शानितमत्यन्तमेति ॥१७॥

नाचिकेत अग्नि का तीन बार अनुष्ठान् करनेवाला और तीनों (ऋक्, साम, यजु:वेदों) के साथ सम्बन्ध जोड़कर तीनों कर्म (यज्ञ, दान, तप) करने वाला मनुष्य जन्म और मृत्यु को पार कर लेता है। वह ब्रह्मा से उत्पन्न उपासनीय अग्निदेव को जानकर और उसका चयन करके परम शान्ति को प्राप्त कर लेता है।
That one who performs this Nachiketas fire- sacrifice (the Agni Vidya will now be known by this name) three times, being united with the three (mother, father and teacher), and who fulfills the three-fold duty (study of the Vedas, sacrifice and alms-giving) crosses over birth and death. Knowing this worshipful shining fire, born of Brahman, and realizing Him, then he obtains everlasting peace. 

कठोपनिषद

16th Mantra of Kathopanishada

(सोलहवां मन्त्र)

तमब्रवीत प्रीयमाणो महात्मा वरं तवेहाद्य ददामि भूय:।
तवैव नामा भवितायमग्नि: सृक्ङां चेमामनेकरुपां गृहाण ॥१६॥

महात्मा यमराज प्रसन्न एवं
संतुष्ट होकर उस (नचिकेता) से बोले-अब (मैं) तुम्हें यहां पुन: एक (अतिरिक्त) वर देता हूं। यह अग्नि तुम्हारे ही ('नाचिकेत अग्नि' के) नाम से विख्यात होगी। और इस अनेक रुपोंवाली (रत्नों की ) माला को स्वीकार करो।

The great-souled Yama, being well satisfied, said to him (Nachiketa): “Let this Agni Vidya become known to the world by your name itself. Also take this chain of precious stones (including diamonds) of various colors.”

कठोपनिषद

15th Mantra of Kathopanishada
(पन्द्रहवां मन्त्र)

लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा।
स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तमथास्य मृत्यु: पुनरेवाह तुष्ट:॥१५॥

उस स्वर्ग लोक की साधन रुपा अग्निविद्या को उस (नचिकेता) को कह दिया। (कुण्डनिर्माण इत्यादि में) जो–जो अथवा जितनी-जितनी ईंटें (आवश्यक होती हैं) अथवा जिस प्रकार उनका चयनकिया जाता है और उस (नचिकेता) ने भी उसे जैसा कहा गया था, पुन: सुना दिया। इसके बाद यमराज उस पर संतुष्ट होकर पुन: बोले।

Yama then told Nachiketa that fire sacrifices (Agni Vidya), the source of the universes, what bricks are required for the altar, how many and how they are to be placed, and Nachiketa repeated all as explained. Then Yama (Death), being pleased with him, and again spoke.

कठोपनिषद

14th Mantra of Kathopanishada.
(चौदहवां मन्त्र)

प्र ते ब्रवीमि तदु मे निवोध स्वर्ग्यमग्निं नचिकेत: प्रजानन्।
अनन्तलोकाप्तिमथो प्रतिष्ठां विद्धि त्वमेतं निहितं गुहायाम् ॥१४॥

(
यमराज ने कहा) हे नचिकेता ! स्वर्गप्राप्ति की साधनरुप अग्निविद्या को भली प्रकार जाननेवाला मैं तुम्हें इसे बता रहा हूं। (तुम) उसे भली प्रकार मुझसे जान लो। तुम इस (विद्या) को
अनंत लोक की प्राप्ति करानेवाली, उसकी आधाररुपा और बुद्धिरुपी गुहा मे स्थित जानो।

(Yama replied :) I know the fire (Agni) that leads to heaven and shall explain it to you. Listen to me. Know it (Agni Vidya), O Nachiketa, which he reached the infinite universe, It is hidden in the heart of all beings.

कठोपनिषद


13th Mantra of Kathopanishada
 (तेरहवां मन्त्र)

स त्वमग्नि स्वर्ग्यमध्येषि मृत्यों प्रब्रूहि त्वं श्रद्दधानाय मह्यम।
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त एतद् द्वितीयेन वृणे वरेण ॥१३॥



(नचिकेता ने कहा) हे मृत्युदेव, आप स्वर्गप्राप्ति की साधनरुप अग्नि को जानते हैं। आप मुझ श्रद्धालु को उसे बता दें। स्वर्गलोक के निवासी अमरत्व को प्राप्त होते हैं। मैं यह दूसरा वर मांगता हूं।


(Nachiketa said :) “O Death! You know the fire of sacrifice which leads to heaven, so describe it to me because my heart is filled with faith. They (who live in the realm of heaven) achieve immortality. This I beg as my second boon.”

कठोपनिषद

12th Mantra of Kathopanishada

(बारहवां मन्त्र )

स्वर्गे लोक न भयं किञ्चनास्ति न तत्र त्वं न जरया बिभेति।
उभे तीर्त्वाशनायापिपासे शेकातिगो मोदते स्वर्गलोके ॥१२॥

(नचिकेता ने कहा) स्वर्गलोक में किञ्चिन्मात्र भी भय नहीं है। वहां आप (मृत्यु) भी नहीं हैं। वहां कोई वृद्धावस्था से नहीं डरता। स्वर्गलोक के निवासी भूख-प्यास दोनों को पार करके शोक से दूर रहकर सुख भोगते हैं।

(Nachiketa said): “There is no fear in the Heaven. You (Death) are also not there. There is no fear of old age. Having crossed beyond both hunger and thirst and being above grief. Thus the man who has attained Heaven remains there with all happiness.”

कठोपनिषद

11th Mantra of Katopanishada
(ग्यारहवां मन्त्र)

यथा पुरस्ताद् भविता प्रतीत औद्दालकिरारुणिर्मत्प्रसृष्ट:।
सुखं रात्री: शयिता वीतमन्युस्त्वां ददृशिवान्मृत्युमुखात्प्रमुक्तम् ॥११॥

(यमराज ने नचिकेता से कहा) तुझे मृत्यु के मुख से प्रमुक्त हुआ देखने पर, मेरे द्वारा प्रेरित आरुणि उद्दालक (तुम्हारे पिता) पहले की भांति ही विश्वास करके क्रोध एवं दु:ख से रहित हो जायेंगे, रात्रियों में सुखपूर्वक् सोयेंगे।

(Yama replied :) “By my intercession, the son of Arun, Uddalaka (the father of Nachiketa), will recognize you as before, and will lose his anger." In the night he shall sleep happily, for having seen you return from the mouth of death”.

कठोपनिषद

10th Mantra of Kathopanishada.

(दसवां मन्त्र)

शान्तसकल्प: सुमना यथा स्याद्वीतमन्युगौर्तमों माभि मृत्यो।
त्वत्प्रसृष्टं माभिवदेत्प्रतीत एतत्त्रयाणां प्रथमं वरं वृणे ॥१०॥

(नचिकेता ने उत्तर दिया) हे (यम) मृत्युदेव, गौतमवंशीय (मेरे पिता) उद्दालक मेरे प्रति शान्त संकल्पवाले, प्रसन्नचित और क्रोधरहित हो जायं, आपके द्वारा वापस भेजे जाने पर वे मुझ पर विश्वास करते हुए मेरे साथ प्रेमपूर्वक बात करें, (मैं) यह तीन में से प्रथम वर मांगता हूं।

Nachiketa replies: “O Yama(the Ruler of death)! My father, Gotham (Uddhalak), be free from anxious thought (about me). May he lose all anger (towards me) and be pacified in heart, and that he may know me and greet me, when I shall be sent away by you."

कठोपनिषद

9th Mantra of Kathopanishad.

(नौवां मन्त्र)

तिस्त्रो रात्रीर्यदवात्सीर्गृहे मे अनश्नन् ब्रह्मन्नतिथिर्नमस्य:।
नमस्ते अस्तु ब्रह्मन् स्वस्ति में अस्तु तस्मात् प्रति त्रीन् बरान् वृणीष्व॥९॥

(यमराज ने कहा) हे ब्राह्मण देवता, आप वन्दनीय अतिथि हैं। मैं आपको नमन करता हूँ। हे ब्राह्मण देवता, मेरा कल्याण हो (मेरे अशुभ नष्ट हों)। आपने जो तीन रात्रियां मेरे घर में बिना भोजन किये ही निवास किया,उसके लिए आप मुझसे प्रत्येक के बदले एक (अर्थात तीन) वर मांग लें।

(Yama said) "Oh, Brahman, since you, venerable guest, has been in my home three days without taking food; I salute you. I hereby pray to you to have that sin removed. Pick as compensation three boons (one for each night of your stay)."

Kathopanishad

8th Mantra of kathopanishad.
(आठवां मन्त्र)

आशा प्रतीक्षे संगतं सूनृतां च इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान्।
एतद् वृड्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे ॥८॥

(यमराज की पत्नी ने यमराज से कहा) जिसके घर में ब्राह्मण बिना भोजन किये रहता है (उस) मन्दबुद्धि पुरुष की आशा और प्रतीक्षा, उनकी पूर्ति से प्राप्त् होनेवाले सुख, सुन्दर वाणी के फल, इष्ट एवं आपूर्त शुभ कर्मो के फल तथा सब पुत्र और पशु आदि (ब्राह्मण के असत्कार से ) नष्ट हो जाते हैं।

In the house of that foolish man which a Brahmin guest stays without taking any food, all his hopes and expectations, all the merit gained by his association with the holy , the fruits of his pious utterances, and the fruits of his good deeds, sacrifices, as well as his sons and cattle all are destroyed by him.