26th Mantra of Kathopanishada.
(छब्बीसवां मन्त्र)
श्वो भावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत् सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेज:।
अपि सर्वम् जीवितमल्पेमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥२६॥
(नचिकेता ने कहा ) हे यमराज (मृत्यु) ! यह कल तक ही रहनेवाले (नश्वर) भोग मरणशील मनुष्य की समस्त इन्द्रियों के तेज को क्षीण कर देते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त जीवन थोड़ा ही है। (इसलिए) आपके रथादि वाहन, स्वर्ग के नृत्य और संगीत आपके ही पास रहें।
अपि सर्वम् जीवितमल्पेमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥२६॥
(नचिकेता ने कहा ) हे यमराज (मृत्यु) ! यह कल तक ही रहनेवाले (नश्वर) भोग मरणशील मनुष्य की समस्त इन्द्रियों के तेज को क्षीण कर देते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त जीवन थोड़ा ही है। (इसलिए) आपके रथादि वाहन, स्वर्ग के नृत्य और संगीत आपके ही पास रहें।
Nachiketa said :) “O (Lord) Yama! “These things last till tomorrow (ephemeral), and they weaken the vigor of all the senses in man. Even the longest life is short. Keep your vehicles and your songs and dances (I have no interest in them).”