कठोपनिषद्


प्रथम अध्याय 
तृतीय वल्ली   


(पन्द्रहवाँ मन्त्र)  
अशब्दमस्पर्शमरुपमव्ययं  तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तं महत: परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥१५॥

(जो शब्दरहित, स्पर्शरहित, रुपरहित, रसरहित और गन्धरहित है तथा अविनाशी, नित्य, अनादि, अनन्त है, (जो)  महत्तत्व (समष्टि बुद्धि अथवा अवयक्त प्रकृति) से भी परे है, जो ध्रुव तत्त्व है, उस परब्रह्म को जानकर (मनुष्य) मृत्यु के मुख से मुक्तहो जाता है।)

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