प्रथम अध्याय
तृतीय वल्ली
(ग्यारहवाँ मन्त्र)
महतः परमव्यक्तमव्यक्तात् पुरुषः परः।
पुरुषान्न परं किज्चित्सा काष्ठा सा परा गतिः ॥११॥
(उस) महान् (जीवात्मा) से अधिक बलवान् अव्यक्त (परमात्मा की माया-शक्ति) होती है। अव्यक्त से भी श्रेष्ठ परमपुरुष (परमात्मा) है परमपुरुष से परे अथवा श्रेष्ठ कुछ भी नहीं होता। वही परमसीमा है । वही परम (सर्वोच्च, श्रेष्ठ) गति है।
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