कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
द्वितीय वल्ली
(तृतीय  मन्त्र)


ऊर्ध्वं प्राणमुन्नयत्यपानं प्रत्यगस्यति।
मध्ये वामनमासीनं विश्वेदेवा उपासते।। ३।।

(जो) प्राण को ऊपर की ओर उठाता है, अपान वायु को नीचे की ओर ढकेलता है, शरीर के मध्यभाग (हृदय) में सूक्ष्म रूप से आसीन (स्थित) है, (उस) सूक्ष्म (सर्वश्रेष्ठ) परमात्मा की, सभी देवता उपासना करते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें