कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(पन्द्रहवाँ  मन्त्र)


यथोदकं शुद्धेशुद्धमासिक्तं तादृगेव भवति।
एवं मुनेर्विजानत आत्मा भवति गौतम।। १५।। 

(हे गौतमवंशीय (नचिकेता) ! जिस प्रकार शुद्ध जल में बरसा हुआ जल वैसा ही शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार विवेक शील (मुनि) की आत्मा हो जाती है।)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें