कठोपनिषद्


(चौबीसवाँ मन्त्र)

नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहित:।
नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात्॥ २४॥

जो दुराचार (दुष्कर्म) से निवृत्त (हटा) न हुआ हो, जो चञ्चल (अशान्त) है, जो प्रमादी है, सावधान (संयमी) नहीं है, जिसके मन में क्षोभ (अशांति) है, वह प्रज्ञान (सूक्ष्म बुद्धि) से भी इस आत्मा को नहीं प्राप्त कर सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें