कठोपनिषद्
प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
(इक्कीसवाँ मन्त्र)
कस्तं मदामदं देवं मदन्यो ज्ञातुमहर्ति॥ २१॥
(परमात्मा) बैठा हुआ भी दूर पहुँच जाता है, सोता हुआ भी सब ओर चला जाता है, उस मद से
युक्त होकर भी मदान्वित न होनेवाले देव को, मेरे अतिरिक्त कौन जानने में समर्थ है?
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