कठोपनिषद्

प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
(सत्रहवाँ मन्त्र)

एतदालम्बनं श्रेष्ठमेतदालम्बनं परम्।
एतदावम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते॥
१७॥

यह (ॐकार ही) श्रेष्ठ आलम्बन (आश्रय) है, यह आलम्बन सर्वोपरि है, इस आलम्बन को जानकर ब्रह्मलोक में महिमान्वित (आनन्दित) होता है।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें