कठोपनिषद्

प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
(सोलहवां मन्त्र)

एतद्धेवाक्षरं ब्रह्म एतद्धेवाक्षरं परम्।
एतद्धेवाक्षरं ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत्॥ १६॥


निश्चयरूप से यह (ॐ) अक्षर (नाश न होने वाला) ही तो ब्रह्म है यह ही परम (सर्वश्रेष्ठ) अक्षर हैइसीलिए इसी अक्षर को जानकर जो जिस विषय की इच्छा करता है उसको वह प्राप्त हो जाता है

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