उपनिषद
Pages - Menu
ईशावास्योपनिषद
सनातन धारा
पूज्य गुरूजी
श्री यन्त्र मंदिर
अनंतबोध
अनन्तबोध योग
कठोपनिषद्
प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
(सोलहवां मन्त्र)
एतद्धेवाक्षरं ब्रह्म एतद्धेवाक्षरं परम्।
एतद्धेवाक्षरं ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत्॥ १६॥
निश्चयरूप से
यह (ॐ)
अक्षर (
नाश न होने वाला
) ही
तो
ब्रह्म है
।
यह
ही परम (
सर्वश्रेष्ठ)
अक्षर है
।
इसीलिए इसी अक्षर को जानकर
जो जिस
विषय
की इच्छा करता है
उसको
वह प्राप्त हो जाता है
।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें