प्रथम अध्याय द्वितीय वल्ली
हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं हतश्चेन्मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ १९॥
(उन्नीसवाँ मन्त्र)
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ १९॥
यदि कोई मारनेवाला स्वयं को मारने में समर्थ मानता है और यदि मारा जानेवाला स्वयं को मारा गया मानता है, वे दोनों ही (सत्य को) नहीं जानते। यह आत्मा न मारता है, न मारा जाता है।
बहुत सुन्दर जानकारी! धन्यवाद!
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