Kathopanishad

8th Mantra of kathopanishad.
(आठवां मन्त्र)

आशा प्रतीक्षे संगतं सूनृतां च इष्टापूर्ते पुत्रपशूंश्च सर्वान्।
एतद् वृड्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे ॥८॥

(यमराज की पत्नी ने यमराज से कहा) जिसके घर में ब्राह्मण बिना भोजन किये रहता है (उस) मन्दबुद्धि पुरुष की आशा और प्रतीक्षा, उनकी पूर्ति से प्राप्त् होनेवाले सुख, सुन्दर वाणी के फल, इष्ट एवं आपूर्त शुभ कर्मो के फल तथा सब पुत्र और पशु आदि (ब्राह्मण के असत्कार से ) नष्ट हो जाते हैं।

In the house of that foolish man which a Brahmin guest stays without taking any food, all his hopes and expectations, all the merit gained by his association with the holy , the fruits of his pious utterances, and the fruits of his good deeds, sacrifices, as well as his sons and cattle all are destroyed by him.

Kathopanishad

7th Mantra of Kathopanishad.

(सातवाँ मन्त्र)

वैश्वानर: प्रविशत्यतिथिर्ब्राह्मणों गृहान्।
तस्यैतां शान्ति कुर्वन्ति हर वैवस्वतोदकम् ॥७॥

[(यमराज की पत्नी और उसके मंत्री  ने यमराज से कहा) हे सूर्यपुत्र यमराज, ब्राह्मण अतिथि घर में अग्नि की भांति प्रवेश करते हैं।गृहस्थ उनकी जल से शान्ति करते हैं, आप (अतिथि के आदर-सम्मान के लिए) जल ले जाइये।]
Yama was advised by his wife and his ministerThe Brahmin guest enters a house like fire. The householder calms him with water. O Yama! Go immediately and bring some water (to perform some respect to the Guest)”.

कठोपनिषद

6th Mantra of Kathopanishada
(छठा मन्त्र)
अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथापरे।
सस्यमिव मर्त्य: पच्यते सस्यमिवाजायते पुन: ॥६॥
अपने पूर्वजों के आचरण का चिन्तन कीजिये, उसके पश्चात अर्थात वर्तमान में किये गए (श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण) पर भी दृष्टिपात कीजिये। मरणधर्मा मनुष्य फसल की भांति पकता है (वृद्ध होता और मृत्यु को प्राप्त होता है ) तथा फसल की भांति ही फिर उत्पन्न होता है।
Nachiketa said "think of the way those before us acted, look behavior of the persons who are with us in present, also look at the actions of other people. Like a crop man ripens (dies) and like crop springs up (reborn) again".

कठोपनिषद

5th Mantra of Kathopanishada

(पांचवां मन्त्र)

बहूनामेमि प्रथमों बहूनामेमि मध्यम:।
किं स्विद्यमस्य कर्तव्यं यन्मयाद्य करिष्यति ॥५॥

नचिकेता ने सोचा कि मैं बहुत से (शिष्यों एवं पुत्रों में) प्रथम हूं, बहुत से मे द्वितीय हूं। यम का कौन सा ऐसा कार्य है, जिसे पिताजी मेरे द्वारा (मुझे देकर) करेंगे?

Nachiketa thought that among many (sons or pupils) I am the foremost, and among many I am middlemost. What work of Yama (God of Death) is it which my father will fulfill through me?

कठोपनिषद


4th Mantra of Kathopanishada
(चतुर्थ मन्त्र)
स होवाच पितरं तत कस्मै मां दास्यतीति।
द्वितीयं तृतीयं तं होवाच मृत्यवे त्वा ददामीति॥४॥

वह ( नचिकेता) विचारपूर्वक पिता से बोला-हे पिता, आप मुझे किसको देंगे ? दूसरी, तीसरी बार (ऐसा कहने पर) पिता ने उससे कहा - मैं तुझे मृत्यु को देता हूं।
4. Having some thoughts Nachiketa spoke to his father (Vajashrava), “O Father, to whom you will give me?” When he asks this repeatedly, twice and thrice, his father said (in anger), “I will give you to God of Death (Mrityu).”