श्वेतकेतु और प्रवाहण की कथा: आत्मा और परलोक के ज्ञान की खोज

**श्वेतकेतु की विद्वता और पांचाल राज्य की यात्रा**


श्वेतकेतु उद्दालक आरुणि के पुत्र थे। गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने अपने पिता से भी ज्ञान प्राप्त किया, जिससे वे पहले से कहीं अधिक विद्वान बन गए। श्वेतकेतु ने स्वयं को सबसे ज्ञानी मान लिया था। एक दिन उन्होंने पांचाल राज्य की राजसभा में जाने का निर्णय किया। वहाँ राजसभा में क्षत्रिय राजकुमार प्रवाहण ने उनसे कहा, "क्या आपने अपनी पूरी शिक्षा प्राप्त कर ली है, मित्र?"


श्वेतकेतु ने उत्तर दिया, "हाँ, महोदय।"


तब राजकुमार ने उनसे ये प्रश्न पूछे:


**राजकुमार प्रवाहण के प्रश्न:**


1. **प्रवाहण:** "क्या आप जानते हैं कि सभी प्राणी मृत्यु के बाद कहाँ जाते हैं?"

   - **श्वेतकेतु:** "नहीं, आदरणीय महोदय, मैं नहीं जानता।"


2. **प्रवाहण:** "क्या आप जानते हैं कि वे कैसे लौटकर आते हैं?"

   - **श्वेतकेतु:** "नहीं, आदरणीय महोदय, मैं नहीं जानता।"


3. **प्रवाहण:** "क्या आप जानते हैं कि देवयान (प्रकाश का मार्ग) और पितृयान (अंधकार का मार्ग) क्या हैं, जिनसे होकर आत्माएँ यात्रा करती हैं?"

   - **श्वेतकेतु:** "नहीं, आदरणीय महोदय, मैं नहीं जानता।"


4. **प्रवाहण:** "क्या आप जानते हैं कि परलोक में कभी भी भीड़ नहीं होती जबकि इस लोक से वहाँ बहुत लोग जाते रहते हैं?"

   - **श्वेतकेतु:** "नहीं, आदरणीय महोदय, मैं नहीं जानता।"


5. **प्रवाहण:** "क्या आप जानते हैं कि आहुति के पांचवें चरण में तात्विक पदार्थ कैसे जीवित व्यक्ति बन जाता है?"

   - **श्वेतकेतु:** "नहीं, आदरणीय महोदय, मैं नहीं जानता।"


प्रवाहण ने कहा, "तो आप कैसे कह सकते हैं कि आपकी शिक्षा पूर्ण हो गई है? ऐसा प्रतीत होता है कि आप इन विषयों के बारे में कुछ भी नहीं जानते।"


**श्वेतकेतु की निराशा और उद्दालक से संवाद**


श्वेतकेतु बहुत दुखी हुआ और अपमानित महसूस किया। वह अपने घर लौट गया और अपने पिता से कहा, "आदरणीय पिता जी, आपने कहा था कि आपने मुझे सम्पूर्ण शिक्षा दी है। लेकिन जब प्रवाहण ने मुझसे पाँच प्रश्न पूछे, तब मैं एक का भी उत्तर नहीं दे सका। आपने मुझे कैसे कहा कि मेरी शिक्षा पूर्ण हो गई है?" यह कहकर उसने पिता को उन प्रश्नों और राजसभा में अपनी अपमानजनक स्थिति के बारे में बताया।


उद्दालक ने ध्यानपूर्वक सुना और कहा, "प्रिय बालक, विश्वास करो कि मैं स्वयं इन प्रश्नों के उत्तर नहीं जानता। यदि मैं जानता होता, तो क्या मैं तुम्हें नहीं बताता?" यह कहकर उद्दालक ने राजकुमार प्रवाहण से इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पांचाल की राजसभा में जाने का निर्णय किया।


**उद्दालक की प्रवाहण से भेंट और ज्ञान प्राप्ति**


राजमहल में उद्दालक का आदरपूर्वक स्वागत किया गया। अगले दिन सुबह, जब वे राजसभा में गए, तो प्रवाहण ने उनसे कहा, "श्रद्धेय मुनिवर, धन-सम्पत्ति सभी को प्रिय होती है। मैं आपको धन अर्पित करता हूँ, जितना चाहे मांग लें।"


उद्दालक ने कहा, "हे उदारचेता राजकुमार, धन-सम्पत्ति अपने पास ही रहने दीजिए, परन्तु उन प्रश्नों के उत्तर बताइए जो आपने मेरे पुत्र श्वेतकेतु से पूछे थे। मैं परलोक के ज्ञान के बारे में जानने के लिए उत्सुक हूँ।"


राजकुमार थोड़े से क्षुब्ध हो गए परंतु मुनि की मनोवृत्ति से प्रसन्न भी हुए। उन्होंने उद्दालक को अपने महल में लम्बे समय तक ठहरने का अनुरोध किया। अवधि के अंत में प्रवाहण ने उद्दालक से कहा, "हे श्रद्धेय गौतम (उद्दालक का एक अन्य नाम), आपसे पूर्व यह ज्ञान किसी ब्राह्मण को नहीं दिया गया। परंपरा से यह ज्ञान केवल क्षत्रियों को ज्ञात था। अब एक ब्राह्मण एक क्षत्रिय राजा से यह ज्ञान प्राप्त कर रहा है।" यह कहकर प्रवाहण ने उद्दालक को उन प्रश्नों का उत्तर देना शुरू किया जो उन्होंने श्वेतकेतु से पूछे थे।


**प्रवाहण की शिक्षाओं का सार:**


प्रवाहण की शिक्षाओं का सार इस प्रकार है:


1. **तात्विक पदार्थ का प्राण में परिवर्तन:**

   - तात्विक पदार्थ पाँच भिन्न चरणों से होकर गुजरने के बाद प्राण या व्यक्ति में परिवर्तित हो जाता है। ये पाँच चरण पाँच भिन्न आहुतियों के प्रतीक हैं।

   - पहले चरण में तात्विक पदार्थ अग्नि या सूर्य की आहुति बनता है, जिससे प्राणदायक सोम रस उत्पन्न होता है।

   - दूसरी आहुति में यह सोम पर्जन्य को अर्पित किया जाता है, जिससे वर्षा होती है।

   - पृथ्वी पर वर्षा के जल से अन्न उत्पन्न होता है।

   - जब मनुष्य अन्न खाता है, तो चौथी आहुति के रूप में इसकी पाचन क्रिया से रेतस या प्राणिक तरल पदार्थ उत्पन्न होता है। यह रेतस पुरुष और स्त्री में अलग-अलग रूप ग्रहण करता है।

   - जब पांचवीं आहुति के रूप में पुरुष का रेतस स्त्री के रेतस से संयुक्त होता है, तो भ्रूण की उत्पत्ति होती है और भ्रूण से ही शिशु का जन्म होता है।


2. **आत्मा की नियति:**

   - मनुष्य का भौतिक शरीर उन तत्वों में विलीन हो जाता है, जिनसे वह बना होता है।

   - परंतु आत्मा की नियति उसके कर्मों और अर्जित ज्ञान पर निर्भर करती है।

   - जिसने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित कर लिया है, वह प्रकाश के मार्ग से जाता है और फिर पृथ्वी पर लौटकर नहीं आता।

   - जिसने आध्यात्मिक ज्ञान नहीं प्राप्त किया है या आंशिक रूप से किया है, वह अंधकार के मार्ग से जाता है और जन्म और मृत्यु के अनंत चक्र में फंसकर कष्ट झेलता है।

   - कुछ लोग ब्रह्मलोक में जाते हैं और पुनः लौटकर नहीं आते। कुछ लोग स्वर्ग जाते हैं और कुछ समय तक वहाँ रहते हैं, फिर पृथ्वी पर अपने कर्मों को पूरा करने के लिए लौट आते हैं।

   - अधिकतर लोग जन्म-मृत्यु के अनंत चक्र में फंस जाते हैं। यही कारण है कि परलोक में कभी भी भीड़ नहीं होती।


**निष्कर्ष:**


जीवन और इसके उद्गम, तथा मृत्यु के बाद आत्मा की नियति का यही ज्ञान है जो क्षत्रिय राजा प्रवाहण ने उद्दालक मुनि को दिया था। इस ज्ञान ने श्वेतकेतु को यह समझने में मदद की कि वास्तविक ज्ञान क्या है और उसे प्राप्त करने के लिए कितनी गहनता से अध्ययन और साधना की आवश्यकता होती है।

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