एक दिन एक किशोर बालक हरिद्रुमत गौतम मुनि के आश्रम में आया और बोला, “मैं आपके संरक्षण में विद्याध्ययन करना चाहता हूँ। कृपया मुझे एक ब्रह्मचारी के रूप में स्वीकार करें।”
मुनि ने पूछा, “बालक, तुम्हारा गोत्र क्या है?”
बालक ने उत्तर दिया, “मुनिवर, मुझे अपना गोत्र नहीं पता। मैंने अपनी माँ से पूछा, लेकिन उसने कहा, ‘मैं भी नहीं जानती। युवावस्था में कई लोगों की सेवा में रही, और तभी तुम्हारा जन्म हुआ। मैं यह नहीं कह सकती कि तुम किस वंश के हो। लेकिन मैं जाबाला हूँ और तुम सत्यकाम हो।’ इसलिए मुनिवर, मुझे सत्यकाम जाबाला के रूप में स्वीकार करें।”
यह सुनकर ऋषि हरिद्रुमत गौतम मुस्कुराए और बोले, “केवल ब्राह्मण ही ऐसा सत्य बोल सकता है। प्रिय बालक, यज्ञ के लिए समिधा ले आओ। मैं तुम्हें ब्रह्मचर्य की दीक्षा दूंगा, क्योंकि तुम सत्य से विचलित नहीं हुए।”
इस प्रकार सत्यकाम जाबाला ब्रह्मचारी के रूप में दीक्षित हो गया।
कुछ समय बाद, ऋषि हरिद्रुमत गौतम ने 400 दुबली और दुर्बल गायों को एकत्रित किया और सत्यकाम से कहा, “प्रिय बालक, इन गायों को वन में ले जाओ और चराओ।”
सत्यकाम ने गायों को हांकते हुए विनम्र भाव से नतमस्तक होकर कहा, “मान्यवर, मैं तभी लौटूंगा जब ये गायें एक सहस्र हो जाएंगी।”
सत्यकाम वन में रहते हुए गायों की देखभाल करता रहा। कई साल बीत गए। जब गायों की संख्या एक सहस्र हो गई, एक दिन संध्या के समय एक वृषभ उसके पास आया और बोला, “प्रिय बालक, हम अब एक सहस्र हो गए हैं। अब हमें गुरु गृह ले चलो।” वृषभ ने कहा, “मैं तुम्हें ब्रह्म का एक चौथाई ज्ञान दूंगा। वह प्रकाशवान है। जो व्यक्ति ब्रह्म को प्रकाशवान रूप में ध्यान करता है, वह इस संसार में प्रकाशवान बन जाता है।” वृषभ ने यह भी कहा कि आगे अग्निदेव तुम्हें ज्ञान देंगे।
प्रातःकाल सत्यकाम गायों के साथ गुरु के आश्रम की ओर चल पड़ा।
संध्या समय में एक स्थान पर गायों को एकत्रित कर उसने अग्नि प्रज्वलित की, समिधा डाली और पूर्वाभिमुख होकर बैठ गया। तब अग्निदेव बोले, “प्रिय बालक, मैं तुम्हें ब्रह्म का एक चौथाई ज्ञान दूंगा। वह अनन्तवान है। जो इसे इस रूप में जानता है और अनन्त रूप में ध्यान करता है, वह इस संसार में अनन्त बन जाता है।” अग्निदेव ने कहा कि आगे एक हंस तुम्हें ब्रह्म का तीसरा चौथाई ज्ञान देगा।
दूसरे दिन सत्यकाम प्रातःकाल गायों को गुरु के आश्रम की ओर ले जाने लगा। संध्या समय में जब गायें एकत्रित हो गईं, उसने अग्नि प्रज्वलित की, समिधा डाली और पूर्वाभिमुख होकर बैठ गया। तभी एक हंस उड़ता हुआ आया और बोला, “सत्यकाम, मैं तुम्हें ब्रह्म का तीसरा चौथाई ज्ञान दूंगा। वह ज्योतिष्मान है। जो उसे इस रूप में जानता है और ज्योतिष्मान के रूप में ध्यान करता है, वह संसार में ज्योतिष्मान बन जाता है।” हंस ने यह भी कहा कि आगे एक जल कुक्कुट तुम्हें ब्रह्म का अंतिम चौथाई ज्ञान देगा।
दूसरे दिन प्रातःकाल सत्यकाम फिर से गायों को गुरु के आश्रम की ओर हांकने लगा। संध्या होने पर उसने गायों को एकत्रित किया, अग्नि प्रज्वलित की, समिधा डाली और पूर्वाभिमुख होकर बैठ गया। तब एक जल कुक्कुट आया और बोला, “सत्यकाम, मैं तुम्हें ब्रह्म का अंतिम चौथाई ज्ञान दूंगा। वह आयतनवान सर्वाधार है। जो इसे इस रूप में जानता है और आयतनवान के रूप में ध्यान करता है, वह संसार में तत् बन जाता है।” जब सत्यकाम एक सहस्र गायों के साथ गुरु के आश्रम में पहुंचा, तब गुरु ने सत्यकाम से पूछा, “प्रिय बालक, तुम्हारा मुखमंडल ब्रह्मज्ञान से प्रदीप्त हो रहा है। किसने तुम्हें यह ज्ञान दिया?”
सत्यकाम ने चार गुरुओं के बारे में बताया और कहा, “मान्यवर, मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप स्वयं इसका प्रतिपादन कर मुझे समझाएं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अपने गुरु से साक्षात प्राप्त ज्ञान पूर्ण होता है।”
तब ऋषि हरिद्रुमत गौतम ने उसे उसी ज्ञान को विस्तार से समझाया। इस प्रकार सत्यकाम ने अपने गुरु से पूर्ण ब्रह्म ज्ञान प्राप्त किया और वह स्वयं भी एक महान गुरु बन गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें