कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(द्वितीय मन्त्र) 

पराच: कामाननुयन्ति बालास्ते मृत्योर्यन्ति वितस्य पाशम्।
अथ धीरा अमृतत्वं विदित्वा ध्रुवमध्रुवेष्विह न प्रार्थयन्ते ।।२।।

(अविवेकशील जन बाह्य भोगों का अनुसरण करते हैं। वे सर्वत्र विस्तीर्ण मृत्यु के बन्धन को प्राप्त करते हैं, किन्तु धीर (विवेकशील) पुरुष ध्रुव (नित्य, शाश्वत) अमृतपद को जानकर इस जगत् में अध्रुव (अनित्य, नश्वर) भोगों में से किसी (भोग) की भी कामना नहीं करते।) 

कठोपनिषद्

द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली


(प्रथम मन्त्र)
पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयंभूस्तस्मात्पराड् पश्यति  नान्तरात्मन्।
कश्चिद्धार:          प्रत्यगात्मानमैक्षदावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ॥१॥

स्वयं भू (स्वयं प्रकट होने वाले) परमेश्वर ने समस्त इन्द्रियों को बहिर्मुखी (बाहर विषयों की ओर जानेवाली) बनाया है। इसीलिए (मनुष्य) बाहर देखता है, अन्तरात्मा को नहीं (देखता)। अमृतत्व (अमरपद) की इच्छा करने वाला कोई एक धीर (बुद्धिमान् पुरुष) अपने चक्षु आदि इन्द्रियों को बाह्य विषयों से लौटाकर प्रत्यगात्मा (अन्त:स्थ,सम्पूर्ण विषयों को जानने वाला आत्मा) को देख पाता है।

कठोपनिषद्


प्रथम अध्याय 
तृतीय वल्ली

(सत्रहवाँ मन्त्र) 
य इमं परमं गुह्यं श्रावयेद्    ब्रह्मसंसदि।
प्रयत: श्राद्धकाले वा तदानन्त्याय क्लपते।
तदानन्त्याय क्लपते ॥१७॥

(जो (मनुष्य) शुद्ध होकर इस परमगुह्य प्रसंग को ज्ञानी जन की सभा में सुनाता है अथवा श्राद्धकाल में सुनाता है, वह अनन्त होने में समर्थ हो जाता है, वह अनन्त होने में समर्थ हो जाता है।)

कठोपनिषद्


प्रथम अध्याय 
तृतीय वल्ली

(सोलहवाँ मन्त्र) 
नाचिकेतमुपाख्यानं     मृत्युप्रोक्तं सनातनम्। 
उक्त्वा श्रुत्वा च मेधावी ब्रह्मलोके महीयते॥१६॥

(बुद्धिमान पुरुष मृत्यु के देवता से कहे हुए नचिकेता-संबंधी उपाख्यान को कहकर और सुनकर ब्रह्मलोक में महिमान्वित होता है।)

कठोपनिषद्


प्रथम अध्याय 
तृतीय वल्ली   


(पन्द्रहवाँ मन्त्र)  
अशब्दमस्पर्शमरुपमव्ययं  तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तं महत: परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥१५॥

(जो शब्दरहित, स्पर्शरहित, रुपरहित, रसरहित और गन्धरहित है तथा अविनाशी, नित्य, अनादि, अनन्त है, (जो)  महत्तत्व (समष्टि बुद्धि अथवा अवयक्त प्रकृति) से भी परे है, जो ध्रुव तत्त्व है, उस परब्रह्म को जानकर (मनुष्य) मृत्यु के मुख से मुक्तहो जाता है।)