(अठारहवाँ
मन्त्र)
न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ १८॥
(आत्मा न जन्म लेता है और न मृत्यु को प्राप्त होता है। यह न तो किसी से उत्पन्न हुआ है न इससे कोई उत्पन्न हुआ है। यह अजन्मा, नित्य शाश्वत, पुरातन है। शरीर के नष्ट हो जाने पर इसका नाश नहीं होता।)
न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ १८॥
(आत्मा न जन्म लेता है और न मृत्यु को प्राप्त होता है। यह न तो किसी से उत्पन्न हुआ है न इससे कोई उत्पन्न हुआ है। यह अजन्मा, नित्य शाश्वत, पुरातन है। शरीर के नष्ट हो जाने पर इसका नाश नहीं होता।)