कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(दसवाँ  मन्त्र)


यदेवेह तदमुत्र यदमुत्र तदन्विह।
मृत्योः स मृत्युमाप्रोति य इह नानेव पश्यति।। १०।। 

जो (परब्रह्म परमात्मा) यहाँ (इस लोक में) है, वही वहाँ (उस लोक में) है। जो वहाँ (परलोक में) है, वही यहाँ (इस लोक में) है। जो यहाँ (परमात्मा को) अनेक की भाँति देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त करता है।

(ग्यारहवाँ मन्त्र)


मनसैवेदमाप्तव्यं नेह नानास्ति किंचन।
मृत्यो: स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति।। ११।।

विशुद्ध एवं सूक्ष्म) मन से ही यह (परमात्म तत्त्व) प्राप्त करने योग्य है यहाँ (जगत् में) अनेक कुछ भी नहीं है। जो मनुष्य यहाँ (इस जगत् में) (परमात्मा को) अनेक की भाँति देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है।





 



कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(नवाँ मन्त्र)


यतश्चोदेति सूर्योऽस्तं यत्र च गच्छति।
तं देवा: सर्वे अर्पितास्तदु नात्येति कश्चन।। एतद् वै तत्।। ९।।

जहाँ (जिस) से सूर्य उदय होता है तथा जिसमें अस्त होता है, सब देव उसे समर्पित हैं (उसमें प्रतिष्ठित हैं)। उस परमात्मा को निश्चय ही कोई भी नहीं लाँघ सकता है। यही तो वह है।

कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(आठवाँ मन्त्र)

अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भ इव सुभृतो गर्भिणीभिः।
दिवे दिवे ईडयो जागृवद्भिर्हविष्मद्भिर्मनुष्येभिरग्निः।। एतद् वै तत्।।८।।

सर्वज्ञ अग्निदेव (जो) गर्भिणी स्त्रियों द्वारा उत्तम प्रकार से धारण किये हुए सुरक्षित गर्भ की भाँति दो अरणियों में निहित है (वह) सावधान रहकर (योग्य सामग्रियों से) यज्ञ करने वाले मनुष्यों द्वारा प्रतिदिन स्तुति करने के योग्य है। यही है वह। (जिसे तुमने जानना चाहा है।) 

कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(सातवाँ मंत्र)


या प्राणेन संभवत्यदितिर्देवतामयी।
गुहां प्रविश्य तिष्ठन्तीं या भूतेभिर्व्यजायत।। एतद् वै तत्।। ७।।

जो सर्वदेवतामयी अदितिदेवी (खानेवाली शक्ति) प्राणों के साथ उत्पन्न होती है, जो प्राणियों के सहित उत्पन्न हुई है, हृदयरूपी गुहा में प्रविष्ट होकर स्थित रहती है, यह ही वह है (जिसे तुम जानना चाहते हो)।

कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
प्रथम वल्ली
(छठवाँ मन्त्र) 

य: पूर्वं तपसो जातमद्भय: पूर्वमजायत।
गुहां प्रविश्य तिष्ठन्तं यो भूतेभिर्व्यपश्यत।। एतद् वै तत्।। ६।।

जो (मनुष्य) सर्वप्रथम तप से (पूर्व) प्रकट होने वाले (हिरण्यगर्भ) को, जो जल (आदि भूतों) से पूर्व पूर्व उत्पन्न हुआ, भूतों के साथ हृदयरूप गुहा में संस्थित देखता है, (वही उसे देखता है)। यह ही वह (आत्मा) है।