॥ प्रश्नोपनिषद् ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः।भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।स्थिरैरङ्गैस्तुष्तुवा सस्तनूभिः।व्यशेम देवहितं यदायुः॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
भद्रम् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रम् पश्येम अक्षभिः यजत्राः स्थिरैः अङ्गैः तुष्टुवांसः तनूभिः वि-अशेम देव-हितम् यत् आयुः ।
भावार्थ: हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनें । जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य हैं (यजत्राः) ऐसे हे देवो, हम अपनी आंखों से मंगलमय घटित होते देखें । नीरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए (तुष्टुवांसः) हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ (देवहितं) सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप्त करें (व्यशेम) । तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक लंबी आयु पावें ।
O, Gods! Let us hear auspicious words through our ears. Those who are worthy of Yagnic rituals (Yajatra:) Let us see auspicious happenings with our eyes in the sacrifices.
Let us enjoy a life that is beneficial to God. (Tushtuvansa): May we attain the age that has been set for us by God (Brahma) for our benefit (Devhitam) hundred of years or more (Vyshem). It means that all the organs and senses of our body remain healthy and functional and we attain a hundred or more long life.
॥ Aum Peace Peace Peace. ॥
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