नारद की शिक्षा की खोज
एक बार नारद ऋषि सनतकुमार के पास गए और उन्होंने ऋषि सनतकुमार से ज्ञान का मार्ग दिखाने तथा परम सत्य की शिक्षा देने का अनुरोध किया।
**सनतकुमार का नारद से संवाद**
सनतकुमार ने नारद से कहा, “पहले मुझे यह बताइये कि आप कितना जानते हैं तब मैं उससे परे के ज्ञान की शिक्षा दूंगा।”
तब नारद ने विनम्रता के साथ कहा, ‘‘मुझे चारों वेदों तथा महाकाव्यों का ज्ञान है। मैंने व्याकरण, कर्मकाण्ड, गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान, ललित कलाओं तथा अन्य अनेक धार्मिक विषयों का अध्ययन किया है। परन्तु इन सब में से कोई भी ज्ञान आत्मज्ञान का सहायक नहीं है। मैंने आप जैसे गुरुओं से सुना है कि जो आत्मा की सिद्धि कर लेता है वह दुःख से परे चला जाता है। मैं शोक में डूब गया हूँ। कृपया मुझे इससे मुक्त होने का ज्ञान दीजिये।”
**सनतकुमार की शिक्षाएँ**
नारद तथा सनतकुमार के बीच एक लंबी वार्ता हुई जिसमें सनतकुमार ने बताया कि जो कुछ नारद जानते हैं वह केवल नाम मात्र है। उससे परे जाने के लिए यह जानना आवश्यक है कि नाम से महत्तर क्या है। तब सनतकुमार ने रहस्योद्घाटन किया कि:
1. **वाक् (वाणी):** नाम से महत्तर है।
2. **मन (चेतना):** वाक् से महत्तर है।
3. **संकल्प:** मन से महत्तर है।
4. **चेतना:** संकल्प से महत्तर है।
5. **ध्यान:** चेतना से महत्तर है।
6. **बोध:** ध्यान से महत्तर है।
7. **शक्ति:** बोध से महत्तर है।
8. **अन्न:** शक्ति से महत्तर है।
9. **जल:** अन्न से महत्तर है।
10. **प्रकाश (ताप):** जल से महत्तर है।
11. **आकाश:** प्रकाश से महत्तर है।
12. **आत्मा:** आकाश से महत्तर है तथा अन्य प्रत्येक वस्तु का तत्त्व है।
**आनन्द का स्रोत**
मनुष्य सर्वदा अपने कर्मों से प्राप्त आनन्द के कारण कुछ करने के लिए विवश रहता है। कोई भी व्यक्ति तब तक कुछ नहीं करता जब तक वह किसी प्रकार के आनन्द से प्रेरित नहीं होता। परन्तु केवल अनन्त ही स्थायी आनन्द का स्रोत है क्योंकि यह अपरिवर्तनशील है। इसलिए व्यक्ति को अनन्त का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
**अनन्त की प्रकृति**
सनतकुमार नारद को अनन्त की प्रकृति की शिक्षा देते हैं- ‘‘जब मनुष्य जीवन की अविभाज्य एकता को सिद्ध कर लेता है तब फिर कुछ अन्य वस्तु नहीं देखता, कुछ अन्य वस्तु नहीं सुनता, कुछ अन्य वस्तु नहीं जानता। उसे ही अनन्त कहते हैं। अनन्त मृत्यु से परे है किन्तु सान्त मृत्यु से बच नहीं सकता।”
**नारद का प्रश्न**
नारद ने पूछा, ‘‘अनन्त किस वस्तु पर निर्भर करता है, हे आदरणीय महोदय ?”
**सनतकुमार का उत्तर**
सनतकुमार ने कहा, ‘‘प्रिय नारद, अनन्त अपनी ही महिमा पर निर्भर है, अन्य किसी पर भी नहीं। विश्व में लोग समझते है कि वे गौओं, अश्वों, हाथियों, स्वर्ण, परिवार, सेवकों तथा भवनों के द्वारा महिमा अर्जित कर सकते हैं। परन्तु मैं उसे महिमा नहीं कहता, क्योंकि यहाँ एक वस्तु दूसरी वस्तु पर निर्भर करती है। परन्तु अनन्त नितान्त स्वतन्त्र है। अनन्त ऊपर है, नीचे है, पहले है, पश्चात है, दक्षिण है, वाम है। मैं यह सब हूँ। आत्मा ऊपर है, और नीचे भी, पूर्व और पश्चात भी, दक्षिण और वाम भी। मैं यह सब हूँ। जो आत्मा पर ध्यान करता है और आत्मज्ञान को सिद्ध कर लेता है, वह सर्वत्र आत्मा को देखता है तथा आत्मा आनन्द का अनुभव करती है। ऐसा व्यक्ति मुक्त अनुभव करता है और जहाँ भी जाता है निश्चिंत अनुभव करता है। उसे पता चलता है कि ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु – ऊर्जा और अन्तरिक्ष, अग्नि और जल, नाम और रूप, जन्म व मरण, मन तथा संकल्प, वाणी और कर्म, मन्त्र तथा ध्यान- सब कुछ आत्मा से ही आते हैं। वह जन्म–मृत्यु के चक्र से तथा विरह और शोक के पार चला जाता है। लेकिन वे जो नाशवान वस्तुओं के पीछे भागते हैं आत्मा को देख नहीं सकते और बन्धन में पडे रहते हैं। इसलिए हे नारद, इन्द्रियों को वश में रख और मन को शुद्ध बना। शुद्ध मन में आत्मा की चेतना निरन्तर बनी रहती है। वहाँ मुक्ति बन्धन को काट देती है तथा आनन्द शोक को नष्ट कर देता है।
इस प्रकार मुनि सनतकुमार ने शुद्ध हृदय नारद को बन्धन के उस पार, शोक तथा अन्धकार से परे आत्मा के प्रकाश में जाने की शिक्षा दी।
(छान्दोग्य उपनिषद् 7.1-26)