कठोपनिषद

कठोपनिषद
(छठां मन्त्र) 
6th Mantra of Second Valli (Kathopanishada) 
न साम्परायः प्रतिभाति बालं प्रमाद्यन्तं वित्तमोहेन मूढम्।
अयं लोको नास्ति पर इति मानी पुनः पुनर्वशमापद्यते मे॥ ६॥
(यमराज ने कहा) धन सम्पत्ति से मोहित, प्रमादग्रस्त अज्ञानी पुरुष को परलोक की बात पसन्द नहीं आती। यह लोक (ही सत्य है) इससे परे (कुछ) नहीं है ऐसा मानने वाला मनुष्य बार-बार मेरे (मृत्यु के) वश में आ जाता है।
The Self never reveals itself to the ignorant person deluded by glamour of wealth. “This world alone exits, he thinks, “and there is no other such thing as Heaven or Hell.” Again and again he comes under my control.

कठोपनिषद

कठोपनिषद
(पांचवां मन्त्र)
5th Mantra of Second Valli (Kathopanishada)
अविद्यायामन्तरे वर्तमानः स्वयं धीराः पण्डितम्मन्यमानाः।
दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ॥५॥
(अविद्या के भीतर ही रहते हुए, स्वयं को धीर और पण्डित माननेवाले मूढजन, भटकते हुए चक्रवत् घूमते रहते हैं, जैसे अन्धे से ले जाते हुए अन्धे मनुष्य।)
 “Those fool who are dwelling in darkness and thinking themselves wise and masters (of knowledge). They go round and round on a tortuous path never they reach their ultimate destination, like the blind lead by the blind.”

कठोपनिषद

(चौथा मन्त्र) प्रथम अध्याय द्वितीय बल्ली
4th Mantra of Second Valli Of Kathopanishada
दूरमेते विपरीत विषूची अविद्या या च विद्येति ज्ञाता।
विद्याभीप्सितं नचिकेतसं मन्ये न त्वा कामा बहवोऽलोलुपन्त ॥४॥
[(यमराज ने कहा) जो अविद्या (प्रेयमार्ग) और विद्या (श्रेयमार्ग) नाम से जाने जाते हैं, ये (दोनों) अत्यन्त विपरीत हैं। (ये) भिन्न-भिन्न फल देनेवाले हैं। मैं तुम नचिकेता को विद्या का अभिलाषी मानता हूँ, (क्योंकि) तुम्हें बहुत से भोग लुब्ध न कर सके।]
(Yama Said): "Very separate, leading to different ends are these two: ignorance (Avidya) and what is known as Knowledge (Vidya). O Nachiketa! I agree that you are the one in search of knowledge since you are not interested in fulfilling all the worldly, material desires that I offered to grant you.”

श्री गुरुमहिमा

श्री गुरुमहिमा
कालिकाराधको नित्यं ज्ञानदीक्षा प्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥१
रहः पूजनसन्तुष्ठो महादेवी प्रपूजकः
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥२
गीतारहस्यवक्ता यः महानिर्वाणदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥३
वेदाद्वैतमताचार्यो सर्वलोकैकदेशिकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥४
ऊर्ध्वरेता महाज्ञानी शिष्यानुग्रहकारकः
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥५
जगद्वन्द्यो मुनिश्रेष्ठस्तत्त्वज्ञानप्रदायकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक
करुणामुदितासिन्धुर्भक्तितत्त्वप्रबोधकः
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥७
आचार्योऽधिगतस्तत्त्वंमुक्तिज्ञानप्रदायकः।

विश्वदेव
नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥८
अनन्तविरचिता गुरुमहिमा