ईशावास्योपनिषद की प्रपीठिका



उपनिषदें शाश्वत ज्ञान का अक्षय स्त्रोत है । सारे संसार मे कोई ऐसा दर्शन नहीं , विचार धारा नहीं जो इनसे प्रभावित नहीं हुई हो । उपनिषदों का दूसरा नाम रहस्य विद्या भी है । जो अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संस्कृति की सभी विचार धाराओ को जीवन दान करती है । उपनिषदों मे उस काल अध्यात्म एवं दर्शन संबंधी सामग्रियों के भव्यचित्र ही नहीं सँजोये गए अपितु भारतीय जीवन दर्शन के सभी पहलुओ का गंभीर विवेचन भी उनमे किया गया है। मानव जीवन मे ही नहीं , इस निखिल विश्व मे व्याप्त सत्य की जिज्ञासा एवं उसके अन्वेषण के लिए उपयोगी साधना की ऐसी उत्कट उत्कंठा उसमे व्यक्त है ; जो विश्व के विस्तृत वाङ्ग्मय मे अन्यत्र दुर्लभ है । उपनिषदों की एक एक वाणी मे अमर तेज और वह शांति दायी आलोक है , जिसे पढ़कर , गुणकर और आचरण कर कितनों की आंखे खुल गयी , कितने सिद्ध बन गए ,कितने जीवन मुक्त हो गए । सहस्त्रों वर्षो से ये सरस्वती के आलोकमय प्रासाद अकिंचनता मे भी कुबेर की समृद्धि अथवा भौतिक अभावों मे भी आध्यात्मिक शांति की निधि लुटाते चले आ रहे है । इन्हे जानने वाले के लिए कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता । कल्पद्रुम के सामने पहुच कर कामनाओ का उदय कैसे हो सकता है ।


यह ईशावास्योपनिषद यजुर्वेद का 40 वां अध्याय है । उपनिषदों की कड़ी मे यह पहला पुष्प है । परम पिता परमात्मा की कृपा से आगे भी निरंतर उपनिषदों के अनुवाद का क्रम चलता रहेगा। इस परम पुनीत कार्य मे मेरे परम पूज्य गुरु देव निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी श्री विश्वदेवानन्द जी महाराज की तथा श्री विद्या स्वामी एम एम सरस्वती जी की प्रेरणा रही है । इस अनुवाद मे श्री सुरेश मिश्रा जी एवं दर्शन विषय की प्राध्यापिका सुश्री द्युति याज्ञिक जी का योगदान रहा है । मै अनन्त बोध चैतन्य सबको धन्यवाद देता हु ।




ईशावास्योनिषद

ईशावास्योनिषद

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
     ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
                            
Om! That (Karana Brahma) is a complete whole. This (Karya Brahma) too is a complete whole. From the complete whole only, the (other) complete whole rose. Even after removing the complete whole from the (other) complete whole, still the complete whole remains unaltered and undisturbed.
                    OM! PEACE! PEACE! PEACE!
ॐ वह (परब्रह्म) पूर्ण है और यह (जगत) भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण (परब्रह्म) से ही पूर्ण (जगत) की उत्पत्ति होती है। तथा पूर्ण (जगत) का पूर्णत्व लेकर (अपने में समाहित करके) पूर्ण (परब्रह्म) ही शेष रहता है। त्रिविध ताप (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक) की शांति हो।
    ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥

ईशावास्योपनिषद

 18th Mantra of Isa-Upanishad.
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमउक्तिं विधेम॥१८॥

हे अग्नि देव ! हमें कर्म फल भोग के लिए सन्मार्ग पर ले चल । हे देव तू समस्त ज्ञान और कर्मों को जानने वाला है । हमारे पाखंड पूर्ण पापों को नष्ट कर । हम तेरे लिए अनेक बार नमस्कार करते है । 
O Fire (Agni)! Lead us on virtuous path to enjoy the wealth that has been accumulates on account of the good deed we performed. Oh God! You are knower of all knowledge and any action. We pray to destroy our false sins. We offer  to you many may  salutations.

ईशावास्योपनिषद

17th Mantra Of Isa-Upanishad.
वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतँ शरीरम्।
ॐ क्रतो स्मर कृतँ स्मर क्रतो स्मर कृतँ स्मर॥१७॥

मेरा प्राण सर्वात्मक वायु रूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो क्योकि वह शरीरों में आने जाने वाला जीव अमर है ;और यह शरीर केवल भस्म पर्यन्त है इसलिये अन्त समय में हे मन  ! ओउम् का स्मरण कर, अपने द्वारा किए हुये कर्मों  स्मरण कर, ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किये हुए कर्मों  का स्मरण कर॥१७॥
Let my Air (Paraná) to achieve all-pervading Air, the eternal Sutratman because The Breath of all being(Atmatatva) is an immortal, and let this body be burnt by fire to aches. O mind! Remember AUM , that which was done! O mind! Remember AUM, Remember that which was done .

ईशावास्योपनिषद

 16th Mantra of Isa-Upanishad.
पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन् समूह तेजः।
यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि॥१६॥

हे जगत पोषक सूर्य ! हे  एकाकी गमन करने वाले ! , यम (संसार का नियमन करनेवाले), सूर्य (प्राण और रस का शोषण करने वाले), हे प्रजापतिनंदन ! आप ताप (दुःखप्रद किरणों को) हटा लीजिये और आपका अत्यन्त मंगलमय रूप है उस को मैं देखता हूं जो वह पुरुष (आदित्य मण्डलस्थ) है वह मैं हूं॥16॥ 
Oh Sun (The one who nutritious the world)! O alone the traveler! Yama (the controller of all)! Oh son of Brahma (the creator of the Universe) I pray to you to shrink your rays into yourself so that I see your very auspicious form.  Whoever is the Purusha residing here (Aditya-Mandalsth), He am I.