कठोपनिषद्


द्वितीय अध्याय 
द्वितीय वल्ली
(पन्द्रहवाँ मन्त्र)


न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विधुतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।।१५।

(न वहाँ सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्रमा और तारागण, न ये विद्युत् (बिजलियां) चमकती हैं। तो वहाँ अग्नि कैसे चमक सकता है? उसके प्रकाशित होने पर ही सब प्रकाशित होता है, उसके प्रकाश से ही यह सब कुछ प्रकाशित होता है।)

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